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दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा डॉलर

दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा डॉलर
महिंद्रा एंड महिंद्रा के चेयरमैन (फोटो: पीटीआई)

डॉलर की मजबूती के क्या फायदे और नुकसान

करीब एक साल से डॉलर की कीमत का लगातार बढ़ना जारी है. ब्रिटेन से लेकर, अटलांटिक पार के देशों और दक्षिण कोरिया से लेकर पूरे प्रशांत के चारों ओर डॉलर सिर चढ़ कर बोल रहा है. डॉलर की कीमत का असर पूरी दुनिया पर होता है.

यूरो और जापानी येन समेत दुनिया की छह बड़ी मुद्राओं से जुड़े सूचकांक में शुक्रवार की बढ़ोत्तरी के साथ डॉलर बीते दो दशकों में सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया है. बहुत से पेशेवर निवेशकों को इसके जल्दी नीचे जाने के आसार नहीं दिख रहे हैं.

जो लोग कभी अमेरिका की सीमा से बाहर दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा डॉलर नहीं गये उन पर भी डॉलर की कीमत के बढ़ने का असर होगा. आखिर डॉलर की कीमत इतनी ज्यादा क्यों बढ़ रही है और इसका निवेशकों और आम लोगों पर क्या असर होगा?

डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है?

एक डॉलर से पहले की तुलना में अब दूसरी मुद्राएं ज्यादा खरीदी जा सकती हैं. जापान के येन को ही लीजिये. एक साल पहले एक डॉलर के बदले 110 येन से थोड़ा कम मिलता था वह आज 143 येन मिल रहा है यानी 30 फीसदी से ज्यादा. अमेरिकी डॉलर की मजबूती का सबसे ज्यादा असर यहीं दिख रहा है.

विदेशी मुद्रा का भाव एक दूसरे की तुलना में लगातार बदलता रहता है क्योंकि बैंक, कारोबार और व्यापारी उन्हें पूरी दुनिया में टाइमजोन के हिसाब से खरीदते और बेचते रहते हैं. यूएस डॉलर इंडेक्स यूरो, येन और दूसरी प्रमुख मुद्राओं की तुलना में डॉलर की कीमत आंकता है. यह सूचकांक इस साल 14 फीसदी से दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा डॉलर ज्यादा बड़ गया. निवेश के दूसरे माध्यमों की तुलना में यह ज्यादा आकर्षक दिख रहा है क्योंकि बाकियों के लिये तो यह साल अच्छा नहीं रहा. अमेरिकी शेयर बाजार 19 फीसदी नीचे है, बिटकॉइन ने अपनी आधी कीमत खो दी है और सोना 7 फीसदी नीचे गया है.

दुनिया की ज्यादातर मुद्राओं की तुलना में डॉलर की कीमत बढ़ रही हैतस्वीर: Zuma/IMAGO

डॉलर मजबूत क्यों हो रहा है?

अमेरिकी अर्थव्यवस्था दूसरी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अच्छा प्रदर्शन कर रही है और यही डॉलर की मजबूती का कारण है. महंगाई की दर ऊंची है, रोजगार की स्थिति मजबूत है और सेवा क्षेत्र जैसे अर्थव्यवस्था के दूसरे सेक्टरों का भी हाल अच्छा है. इन सब ने धीमे पड़ते निर्माण क्षेत्र और कम ब्याज दर में अच्छा करने वाले सेक्टरों से उपजी चिंताएं दूर की हैं. इसके नतीजे में व्यापारी उम्मीद कर रहे हैं कि फेडरल रिजर्व ब्याज बढ़ाते रहने का अपना वादा निभाता रहेगा और कुछ समय के लिये यह व्यवस्था लागू रहेगी. इसके सहारे ऊंची महंगाई दर का सामना करने की तैयारी है जो 40 सालों में फिलहाल सबसे ऊंचे स्तर पर है.

इन सब उम्मीदों ने सरकार के 10 सालों के सरकारी प्रतिभूतियों के राजस्व में एक साल पहले के 1.33 फीसदी की तुलना में 3.44 फीसदी की बढ़ोत्तरी की है.

सरकारी प्रतिभूतियों की चिंता किसे?

जो निवेशक अपने पैसे से ज्यादा कमाई करना चाहते हैं उनका ध्यान लुभावने दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा डॉलर अमेरिकी बॉन्ड की तरफ गया है. दुनिया भर के निवेशक उनकी ओर जा रहे हैं. फेडरल बैंक की तुलना में दूसरे देशों के केंद्रीय बैंक इस समय निवेश आकर्षित करने में ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं क्योंकि उनकी अर्थव्यवस्थाओं का हाल अच्छा नहीं है. यूरोपीय सेंट्रल बैंक ने अपने प्रमुख दर में अब तक की सबसे ज्यादा 0.75 फीसदी की बढ़ोत्तरी की है. दूसरी तरफ फेडरल रिजर्व अपनी दर इस साल इसी मात्रा में दो बार बढ़ा चुका है और अगले हफ्ते इसे एक बार और बढ़ाने की उम्मीद की जा रही है. कुछ लोगों को तो उम्मीद है कि मंगलवार को महंगाई के बारे में जो रिपोर्ट आई है उसे देखने के बाद पूरे एक प्रतिशत की भी बढ़ोत्तरी हो सकती है.

यूरोप और दुनिया के दूसरे हिस्सों में 10 सालों के सरकारी प्रतिभूतियों पर अमेरिका की तुलना में कम राजस्व हासिल हुआ है. मसल जर्मनी में 1.75 फीसदी तो जापान में केवल 0.25 फीसदी.

यूरो और डॉलर की कीमत अब बराबर हो गई हैतस्वीर: Pascal Nöthe/Kroatische Nationalbank

मजबूत मुद्रा से अमेरिकी सैलानियों को फायदा

टोक्यो में रात के खाने पर आज अगर कोई अमेरिकी सैलानी 10,000 येन खर्च करता है तो वह उसी खाने के लिये एक साल पहले की तुलना में 23 फीसदी कम डॉलर दे रहा है. मिस्र के पाउंड से लेकर अर्जेंटीना के पेसो और दक्षिण कोरिया के वॉन तक के मुकाबले इस साल डॉलर की कीमत जिस तेजी से बढ़ रही है वह कई और देशों में अमेरिकी सैलानियों का फायदा करायेगी.

तो क्या मजबूत डॉलर से सिर्फ उन अमीर अमेरिकी लोगों का ही फायदा होगा जो दूसरे देशों की सैर करने जाते हैं? नहीं ऐसा नहीं है मजबूत डॉलर अमेरिका के आम लोगों को भी फायदा पहुंचायेगा क्योंकि इससे आयात की जाने वाली चीजों की कीमतें घटेंगी और महंगाई की दर नीचे जायेगी. उदाहरण के लिये जब दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा डॉलर यूरो के मुकाबले डॉलर की कीमत बढ़ती है तो यूरोपीय कंपनियों को हर डॉलर की बिक्री से ज्यादा यूरो मिलते हैं. ऐसे में वो अपने सामान की डॉलर में कीमत घटा कर भी उसी मात्रा में यूरो हासिल कर सकते हैं. वो चाहें तो डॉलर में कीमत वही रख कर ज्यादा यूरो अपनी जेब में डाल सकते हैं या फिर वो इन दोनों के बीच में एक संतुलन बनाने की भी कोशिश कर सकते हैं.

अमेरिका में आयात की कीमतें एक महीने पहले की तुलना में अगस्त में 1 फीसदी कम हो गईं. इसी तरह जुलाई में यह उसके पिछले महीने की तुलना में 1.5 फीसदी कम हुई इससे देशवासियों को महंगाई से थोड़ी राहत मिली. आयात किये जाने वाले फल, मेवे और इसी तरह की कुछ और चीजों की कीमतें 8.7 फीसदी कम हुई हैं. एक साल पहले की तुलना में यह अंतर करीब 3 फीसदी का है.

मजबूत डॉलर आमतौर पर कई सामानों की कीमत पर असर डाल सकता है. इसकी वजह यह है कि तेल, सोना और दूसरी कई चीजें दुनिया भर में अमेरिकी डॉलर में खरीदी और बेची जाती हैं. जब डॉलर की मुद्रा येन के मुकाबले बढ़ती है तो जापानी खरीदार को उसी मात्रा में येन के बदले कम तेल मिलता है.

यूरो के गिरने से किसका फायदा हो रहा है?

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तो क्या मजबूत डॉलर से सिर्फ फायदा ही फायदा है?

बिल्कुल नहीं. अमेरिकी कंपनियां जो दूसरे देशों को बेचती हैं उनका मुनाफा घटता है. मैकडॉनल्ड की कमाई एक साल पहले की गर्मियों की तुलना में इस बार 3 फीसदी घट गई. अगर डॉलर की कीमत दूसरी मुद्राओं की तुलना में वही रहती तो उसकी कमाई 3 फीसदी बढ़ी होती. इसी तरह विदेशी मुद्रा की कीमतों में बदलाव के कारण माइक्रोसॉफ्ट के पिछली तिमाही दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा डॉलर के राजस्व में में 59.5 करोड़ डॉलर की कमी आई.

कई कंपनियों के राजस्व को लेकर इस तरह की चेतावनियां दी जा रही हैं. डॉलर की कीमत बढ़ने का असर उनके मुनाफे पर और ज्यादा दबाव बनायेगा. एसएंडपी 500 इंडेक्स में शामिल कंपनियां मोटे तौर पर 40 फीसदी से ज्यादा कमाई अमेरिका के बाहर के देशों में करती हैं.

बहुत सी कंपनियां और उभरती अर्थव्यवस्था वाली सरकारें अपनी मुद्रा की बजाय अमेरिकी डॉलर के रूप में कर्ज लेती हैं. जब उनकी अपनी मुद्रा से कम डॉलर मिल रहे हों तो फिर उन पर दबाव बढ़ जाता है.

कब तक मजबूत रहेगा डॉलर

आने वाले दिनों में डॉलर की कीमत में बड़ा बदलाव आ सकता है लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि कुछ समय तक डॉलर मजबूत स्थिति में बना रहेगा. मंगलवार को अमेरिकी महंगाई के बारे में आई रिपोर्ट ने बाजार को कड़ा झटका दिया है और इस बात के प्रबल संकेत हैं कि दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा डॉलर यह अभी इतनी जल्दी नीचे नहीं जायेगा. व्यापारी फेडरल रिजर्व से ब्याज दर बढ़ाने की उम्मीद कर रहे हैं जो अगले साल तक जारी रह सकता है. फेडरल रिजर्व के अधिकारियों का भी कहना है कि वो ब्याज दर बढ़ाते रहेंगे जब तक कि महंगाई पर लगाम नहीं लगती, भले ही इसके कारण आर्थिक विकास प्रभावित हो. जाहिर है कि फेडरल रिजर्व का यह रुख डॉलर की मजबूती को फायदा पहुंचाता रहेगा.

चार साल की सबसे बड़ी उछाल, 1 दिन में रुपया 100 पैसे मजबूत

डॉलर के मुकाबले रुपये में शुक्रवार को बढ़ोतरी हुई और देसी मुद्रा ने चार साल की सबसे बड़ी एकदिवसीय उछाल दर्ज की क्योंकि अमेरिका में उम्मीद से कमजोर महंगाई के आंकड़े ने संभावना बढ़ा दी है कि फेडरल रिजर्व नीतिगत सख्ती में धीमी रफ्तार अपनाएगा।

शुक्रवार को रुपया 80.81 पर बंद हुआ, जो एक दिन पहले के मुकाबले 100 पैसे मजबूत है। शुक्रवार को रुपये में 18 दिसंबर, 2018 के बाद की सबसे बड़ी एकदिवसीय बढ़ोतरी दर्ज हुई। ब्लूमबर्ग के आंकड़ों से यह जानकारी मिली। रुपये का शुक्रवार का बंद स्तर 21 सितंबर, 2022 के बाद भी सबसे मजबूत स्तर है। साल 2022 में अब तक डॉलर के मुकाबले रुपये में 8 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है।

गुरुवार को भारत में कारोबार समाप्त होने के बाद जारी आंकड़ों से पता चलता है कि अमेरिका में उपभोक्ता कीमत पर आधारित महंगाई अक्टूबर में नौ महीने के ​ ​​निचले स्तर 7.7 फीसदी रह गई, जो बाजार के 8 फीसदी के अनुमान से कम है।

कई महीने से 40 साल के उच्चस्तर के पास रही अमेरिकी महंगाई में अंतत: नरमी आने लगी है और ट्रेडरों का मानना है कि फेड भविष्य में ब्याज दर बढ़ोतरी में नरमी ला सकता है। फेड ने मार्च 2022 के बाद से ब्याज दरों में 375 आधार अंकों का इजाफा किया है और चार बार ब्याज बढ़ोतरी 75 आधार अंक रही है।

अमेरिका में उच्च ब्याज दर से वैश्विक फंडों को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की ओर जाने के लिए प्रोत्साहित किया, जिससे डॉलर में मजबूती आई। इसने उभरते बाजारों की मुद्राओं मसलन रुपये पर दबाव बढ़ाया।

एमके ग्लोबल फाइनैंशियल सर्विसेज की अर्थशास्त्री माधवी अरोड़ा ने कहा, अक्टूबर में घटी महंगाई से संकेत मिलता है कि कीमत का दबाव घटना शुरू हो सकता है। साथ ही मुख्य सीपीआई भी अंतत: गिरावट का रुख दर्शा रही है।

अमेरिकी महंगाई के आंकड़ों से डॉलर में तेज गिरावट आई और 3.30 बजे डॉलर इंडेक्स 107.32 पर रहा। गुरुवार को इस समय इंडेक्स 110.93 पर था।

एएनजेड बैंक के ट्रेडिंग प्रमुख नितिन अग्रवाल ने कहा, हमने डॉलर इंडेक्स को 114-115 के उच्चस्तर पर देखा था और वास्तव में ऐसे समय में बाजार चिंतित था कि यह 119-120 तक जा सकता है। यह मंदी की स्थिति का उच्चस्तर था। अब डॉलर इंडेक्स नरम हुआ है, इसका मतलब यह है कि डॉलर की तरफ से दबाव पूरा हो चुका है।

आईएफए ग्लोबल के सीईओ अभिषेक गोयनका को आगामी दिनों में रुपया 80 के आसपास पहुंचता दिख रहा है, वहीं फिनरेक्स ट्रेजरी एडवाइजर्स ने इसके 80.20 से लेकर 81.50 प्रति डॉलर के दायरे में रहने का अनुमान जताया है।

डॉलर इंडेक्स में नरमी ने कई महीनों के उतारचढ़ाव के बाद रुपये को राहत दी है। सितंबर से डॉलर के मुकाबले रुपया 4 फीसदी लुढ़का है और 20 अक्टूबर को 83.29 के सर्वकालिक निचले स्तर को छू गया था। इस अवधि में रुपये को उभरते बाजारों की मुद्राओं में सबसे ज्यादा झटका लगा।

रुपए की गिरावट पर बोले आनंद महिंद्रा – डॉलर मजबूत हो गया, लेकिन अमेरिका का प्रभाव दुनिया दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा डॉलर में घटा

Dollar vs Rupees: आनंद महिंद्रा सोशल मीडिया पर खुलकर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अमेरिकी डॉलर में मजबूती को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी है।

रुपए की गिरावट पर बोले आनंद महिंद्रा – डॉलर मजबूत हो गया, लेकिन अमेरिका का प्रभाव दुनिया में घटा

महिंद्रा एंड महिंद्रा के चेयरमैन (फोटो: पीटीआई)

वैश्विक कारणों के चलते भारतीय रुपए पर लगातार दबाव बना हुआ है, जिसके कारण भारतीय रुपए अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 80 रुपए के स्तर तक पहुंच गया है। इसी पर महिंद्रा एंड महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने अपनी प्रतिक्रिया दी है।

उन्होंने ट्विटर पर न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट को रीट्वीट करते हुए लिखा कि शक्तिशाली डॉलर और ताकतवर हो गया है, लेकिन पूरे विश्व में अमेरिका के प्रभाव में घटा है। डॉलर अभी भी दुनिया की सबसे सुरक्षित मुद्रा बनी हुई है। डॉलर के मुकाबले अन्य देशों मुद्राओं के अवमूल्यन के मामले में हम (भारत) बीच में है।

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिकी डॉलर विश्व की अन्य मुद्राओं के सामने के मजबूत हो रहा है और इस कारण से वैश्विक अर्थवयवस्था का आउटलुक अस्थिर हो रहा है। रिपोर्ट में दिए आकंड़ों के मुताबिक इस साल की शुरुआत से 15 जुलाई तक अमेरिकी डॉलर मुकाबले तुर्की की मुद्रा 20 फीसदी से अधिक गिरी है। इसके बाद अर्जेंटीना, हंगरी, जापान और मिश्र की मुद्रा 15 से 20 फीसदी के बीच गिरी है। पोलैंड, स्वीडन, चिली, ब्रिटेन, नॉर्वे, डेनमार्क, यूरो, दक्षिण कोरिया, इजरायल की मुद्रा 10 से 15 फीसदी के बीच रही है। दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा डॉलर इंडोनेशिया, भारत, चीन, थाईलैंड, ऑस्ट्रलिया और दक्षिण अफ्रीका की मुद्रा में 5 से 10 फीसदी की गिरावट आई है। वहीं, कनाडा, सिंगापुर, नाइजीरिया और मेक्सिको की मुद्रा में 0 से 5 फीसदी तक की गिरावट हुई है।

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दुनिया की चार मुद्राएं डॉलर के समाने हुई मजबूत: रिपोर्ट में बताया गया कि केवल अंगोला, रूस, उरुग्वे और ब्राजील की मुद्राएं ही डॉलर के सामने मजबूत हुई हैं। डॉलर के सामने अंगोला की मुद्रा 30 फीसदी, रूस की मुद्रा करीब 28 फीसदी, उरुग्वे की मुद्रा करीब 7 फीसदी और ब्राजील की मुद्रा करीब 3 फीसदी मजबूत हुई है।

रिपोर्ट में कहा गया कि ऐसी विदेशी कंपनियां जो अपनी अधिकतर बिक्री अंतरराष्ट्रीय बाजार में करती है, उन्हें डॉलर की कीमत बढ़ने से बड़ा फायदा होने वाला है। ब्रिटिश लक्जरी ब्रांड Burberry का कहना है कि डॉलर की कीमत बढ़ने से उसकी आय में करीब 200 मिलियन डॉलर का इजाफा होगा। लेकिन ऐसी अमेरिकन कंपनियां जो अपनी अधिकतर बिक्री अंतरराष्ट्रीय बाजार में करती है, जब वह अपनी आय डॉलर में बदलेगी तो उनकी बिक्री में कमी आ सकती है।

डॉलर दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा क्यों मानी जाती है?

एक समय था जब एक अमेरिकी डॉलर सिर्फ 4.16 रुपये में खरीदा जा सकता था, लेकिन इसके बाद साल दर साल रुपये का सापेक्ष डॉलर महंगा होता जा रहा है अर्थात एक डॉलर को खरीदने के लिए अधिक डॉलर खर्च करने पास रहे हैं. ज्ञातव्य है कि 1 जनवरी 2018 को एक डॉलर का मूल्य 63.88 था और 18 फरवरी, 2020 को यह 71.39 रुपये हो गया है. आइये इस लेख में जानते हैं कि डॉलर दुनिया में सबसे मजबूत मुद्रा क्यों मानी जाती है?

Why Dollar is Global Currency

दुनिया का 85% व्यापार अमेरिकी डॉलर की मदद से होता है. दुनिया भर के 39% क़र्ज़ अमेरिकी डॉलर में दिए जाते हैं और कुल डॉलर की संख्या के 65% का इस्तेमाल अमरीका के बाहर होता है. इसलिए विदेशी बैंकों और देशों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर की ज़रूरत होती है. आइये इस लेख के माध्यम से जानते हैं कि आखिर डॉलर को विश्व में सबसे मजबूत मुद्रा के रूप में क्यों जाना जाता है?

अब हालात तो ऐसे हो गए हैं कि यदि कोई डॉलर का नाम लेता है तो लोगों के दिमाग में सिर्फ अमेरिकी डॉलर ही आता है जबकि विश्व के कई देशों की करेंसी का नाम भी 'डॉलर' है. अर्थात अमेरिकी डॉलर ही “वैश्विक डॉलर” का पर्यायवाची बन गया है.

डॉलर की मजबूती का इतिहास:

वर्ष 1944 में ब्रेटन वुड्स समझौते के बाद डॉलर की वर्तमान मज़बूती की शुरुआत हुई थी. उससे पहले ज़्यादातर देश केवल सोने को बेहतर मानक मानते थे. उन देशों की सरकारें वादा करती थीं कि वह उनकी मुद्रा को सोने की मांग के मूल्य के आधार पर तय करेंगे.

न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स में दुनिया के विकसित देश मिले और उन्होंने अमरीकी डॉलर के मुक़ाबले सभी मुद्राओं की विनिमय दर को तय किया. उस समय अमरीका के पास दुनिया का सबसे अधिक सोने का भंडार था. इस समझौते ने दूसरे देशों को भी सोने की जगह अपनी मुद्रा का डॉलर को समर्थन करने की अनुमति दी.

bretton woods conference

(ब्रेटन वुड्स कांफ्रेंस)

सन 1970 की शुरुआत में कई देशों ने मुद्रास्फीति से लड़ने के लिए डॉलर के बदले सोने की मांग शुरू कर दी थी. ये देश अमेरिका को डॉलर देते और बदले में सोना ले लेते थे. ऐसा होने पर अमेरिका का स्वर्ण भंडार खत्म होने लगा. उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने अपने सभी भंडारों को समाप्त करने की अनुमति देने के बजाय डॉलर को सोने से अलग कर दिया और इस प्रकार डॉलर और सोने के बीच विनिमय दर का करार खत्म हो गया और मुद्राओं का विनिमय मूल्य; मांग और पूर्ती के आधार पर होने लगा.

डॉलर सबसे मजबूत मुद्रा होने के निम्न कारण हैं

1. इंटरनेशनल स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइज़ेशन लिस्ट के अनुसार दुनिया भर में कुल 185 मुद्राएँ हैं. हालांकि, इनमें से ज़्यादातर मुद्राओं का इस्तेमाल अपने देश के भीतर ही होता है. कोई भी मुद्रा दुनिया भर में किस हद तक प्रचलित है यह उस देश की अर्थव्यवस्था और ताक़त पर निर्भर करता है. ज़ाहिर है डॉलर की मज़बूती और उसकी स्वीकार्यता अमरीकी अर्थव्यवस्था की ताक़त को दर्शाती है.

2. दुनिया का 85% व्यापार अमेरिकी डॉलर की मदद से होता है. दुनिया भर के 39% क़र्ज़ अमेरिकी डॉलर में दिए जाते हैं और कुल डॉलर की संख्या के 65% का इस्तेमाल अमरीका के बाहर होता है. इसलिए विदेशी बैंकों और देशों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर की ज़रूरत होती है.

3. विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में देशों के कोटे में भी सदस्य देशों को कुछ हिस्सा अमेरिकी डॉलर के रूप में जमा करना पड़ता है.

4. दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों में जो विदेशी मुद्रा भंडार होता है उसमें 64% अमरीकी डॉलर होते हैं.

5. यदि दो नॉन अमेरिकी देश भी एक दूसरे के साथ व्यापार करते हैं तो भुगतान के रूप में वे अमेरिकी डॉलर लेना पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि यदि उनके हाथ में डॉलर है तो वे किसी भी अन्य देश से अपनी जरूरत का सामान आयात कर लेंगे.

6. अमेरिकी डॉलर की विनिमय दर में बहुत अधिक उतार-चढ़ाव नहीं होता है इसलिए देश इस मुद्रा को तुरंत स्वीकार कर लेते हैं.

7. अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है जिसके कारण यह बहुत से गरीब देशों को अमरीकी डॉलर में ऋण देता है और ऋण बसूलता भी उसी मुद्रा में हैं जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर की मांग हमेशा रहती है.

8. अमेरिका विश्व बैंक समूह और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के खजानों में सबसे अधिक योगदान देता है इस कारण ये संस्थान भी सदस्य देशों को अमेरिकी डॉलर में ही कर्ज देते हैं. जो कि डॉलर की वैल्यू को बढ़ाने के मददगर होता है.

डॉलर के बाद दुनिया में दूसरी ताक़तवर मुद्रा यूरो है जो दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों के विदेशी मुद्रा भंडार में 20% है. यूरो को भी पूरे विश्व में आसानी से भुगतान के साधन के रूप में स्वीकार किया जाता है. दुनिया के कई इलाक़ों में यूरो का प्रभुत्व भी है. यूरो इसलिए भी मज़बूत है क्योंकि यूरोपीय यूनियन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. कुछ अर्थशास्त्री मानते हैं कि निकट भविष्य में यूरो, डॉलर की जगह ले सकता है.

डॉलर को चीनी और रूसी चुनौती:

मार्च 2009 में चीन और रूस ने एक नई वैश्विक मुद्रा की मांग की. वे चाहते हैं कि दुनिया के लिए एक रिज़र्व मुद्रा बनाई जाए 'जो किसी इकलौते देश से अलग हो और लंबे समय तक स्थिर रहने में सक्षम हो.

इसी कारण चीन चाहता है कि उसकी मुद्रा “युआन” वैश्विक विदेशी मुद्रा बाज़ार में व्यापार के लिए व्यापक तरीक़े से इस्तेमाल हो. अर्थात चीन, युआन को अमेरिकी डॉलर की वैश्विक मुद्रा के रूप में इस्तेमाल होते देखना चाहता है. ज्ञातव्य है कि चीन की मुद्रा युआन को IMF की SDR बास्केट में 1 अक्टूबर 2016 को शामिल किया गया था.

यूरोपियन यूनियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2016 में विश्व के कुल निर्यात में अमेरिका का हिस्सा 14% और आयात में अमेरिकी हिस्सा 18% था. तो इन आंकड़ों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने के पीछे सबसे बड़ा कारण अमेरिका का विश्व व्यापार में महत्व और डॉलर की अंतरराष्ट्रीय बाजार में वैश्विक मुद्रा के रूप में सर्वमान्य पहचान है.

रुपये में दुनिया की दूसरी करंसी के मुकाबले गिरावट कम, येन, यूरो के मुकाबले बेहतर रहा प्रदर्शन: CEA

अमेरिकी डॉलर के मुकाबले इस साल अब तक रुपये की कीमत करीब 7.5 प्रतिशत तक कम हो चुकी है. सोमवार को रुपया कारोबार के दौरान रुपया पहली बार 80 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर आ गया था

रुपये में दुनिया की दूसरी करंसी के मुकाबले गिरावट कम, येन, यूरो के मुकाबले बेहतर रहा प्रदर्शन: CEA

TV9 Bharatvarsh | Edited By: सौरभ शर्मा

Updated on: Jul 20, 2022 | 8:10 PM

देश के चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर वी अनंत नागेश्वरन (Chief Economic Advisor) के मुताबिक भारतीय रुपये में गिरावट दुनिया की अन्य प्रमुख करंसी में डॉलर के मुकाबले आई गिरावट से कम है. यानि रुपये के अन्य करंसी के मुकाबले प्रदर्शन बेहतर रहा है. उनके मुताबिक रुपये के मुकाबले यूरो, ब्रिटिश पाउंड और येन में गिरावट रुपये से ज्यादा रही है. नागेश्वरन ने कहा कि डॉलर के मुकाबले अन्य करंसी में आई गिरावट फेडरल रिजर्व के द्वारा नीतियों में की गई सख्ती की वजह से है. साल 2022 में अबतक डॉलर के मुकाबले रुपया (Rupee vs dollar) 7 प्रतिशत से ज्यादा टूट चुका है.

रुपये में गिरावट पर क्या कहा CEA ने

नागेश्वरन ने डॉलर के मुकाबले रुपये एवं अन्य मुद्राओं की कीमतों में आई इस गिरावट के लिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व के आक्रामक रुख को जिम्मेदार बताया है. उन्होंने कहा कि फेडरल रिजर्व के सख्त रवैये से तमाम उभरती अर्थव्यवस्थाओं से विदेशी पूंजी की निकासी हो रही है जिससे स्थानीय मुद्राएं दबाव में आ गई हैं. एक कार्यक्रम में नागेश्वरन ने संवाददाताओं से कहा कि जापानी येन, यूरो, स्विस फ्रैंक, ब्रिटिश पौंड का डॉलर के मुकाबले कहीं ज्यादा अवमूल्यन हुआ है. उन्होंने कहा कि सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक दोनों ने ही विदेशी मुद्रा की निकासी को रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं. इसके साथ ही विदेशी पूंजी को आकर्षित करने की कोशिशें भी की गई हैं ताकि भारतीय मुद्रा की गिरती कीमत को रोका जा सके. अमेरिकी डॉलर के मुकाबले इस साल अब तक रुपये की कीमत करीब 7.5 प्रतिशत तक कम हो चुकी है. सोमवार को रुपया कारोबार के दौरान रुपया पहली बार 80 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर आ गया था.

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रुपये में गिरावट चिंता की बात नहीं – आर्थिक मामलों के सचिव

वहीं कल ही आर्थिक मामलों के सचिव अजय सेठ ने भी यही बात कही थी. उन्होने कहा कि रुपये को बेहतर तरीके से प्रबंधित किया गया है और घरेलू मुद्रा की विनिमय दर में गिरावट को लेकर निश्चित तौर पर चिंता करने वाली कोई बात नहीं है. उन्होंने कहा कि रुपया ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन और यूरो जैसी कई विदेशी मुद्राओं की तुलना में मजबूत हुआ है। इससे इन मुद्राओं में आयात डॉलर के मुकाबले सस्ता हुआ है.

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