अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें

डेली अपडेट्स
यह एडिटोरियल दिनांक 19/06/2021 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' में प्रकाशित लेख “From 1991, the lessons for the India of 2021” पर आधारित है। इसमें कोविड-19 महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था के सामने आ रही संकट के समाधान हेतु 30 वर्ष पूर्व वर्ष 1991 में लागू किये गए आर्थिक सुधारों से सीख लेने के विचार पर चर्चा की गई है।
संदर्भ
तीस वर्ष पूर्व वर्ष 1991 में शुरू किये गए उदारीकरण की नीति का वर्ष 2021 में 30 साल पूरे हो गए। वर्ष 1991 के सुधार भारत के स्वतंत्रता के बाद के इतिहास में एक ऐतिहासिक क्षण था जिसने अर्थव्यवस्था की प्रकृति को मौलिक तरीकों से बदल दिया। भुगतान संतुलन की गंभीर समस्या ने वर्ष 1991 में आर्थिक संकट को जन्म दिया। इससे निपटने के लिये भारत के आर्थिक प्रतिष्ठान ने भारत की व्यापक आर्थिक बैलेंस शीट को सुधारने के लिये एवं विकास की गति को बढ़ाने के लिये एक बहुआयामी सुधार एजेंडा शुरू किया।
तीन दशक बाद कोविड-19 महामारी के कारण देश की अर्थव्यवस्था के सामने एक और बड़ी परीक्षा सामने खड़ी है। हालांकि दोनों संकट अपने आप में काफी भिन्न हैं, किंतु दोनों की गंभीरता तुलनीय हैं।
वर्ष 1991 के सुधारों का महत्त्व
1990 के बाद की भारत की आर्थिक रणनीति
- इसके तहत आर्थिक व्यवस्था पर हावी होने वाले एवं विकास की गति को बाधित करने वाले गैर-ज़रूरी नियंत्रणकारी और परमिट के विशाल तंत्र को समाप्त कर दिया।
- इसके तहत राज्य की भूमिका को आर्थिक लेन-देन के सूत्रधार के रूप में और वस्तुओं और सेवाओं के प्राथमिक प्रदाता के बजाय एक तटस्थ नियामक के रूप में परिभाषित किया।
- इसने आयात प्रतिस्थापन के बदले और वैश्विक व्यापार प्रणाली के साथ पूरी तरह से एकीकृत होने का नेतृत्व किया।
सुधारों का प्रभाव
- 21वीं सदी के पहले दशक तक भारत को सबसे तेज़ी से उभरते बाज़ारों में से एक के रूप में देखा जाने लगा।
- वर्ष 1991 के सुधारों ने भारतीय उद्यमियों की ऊर्जा को एक उपयुक्त मंच प्रदान किया।
- उपभोक्ताओं को विकल्प दिया और भारतीय अर्थव्यवस्था का चेहरा बदल दिया। पहली बार देश में गरीबी की दर में काफी कमी आई।
वर्ष 1991 के संकट की वर्ष 2021 से तुलना
उच्च राजकोषीय घाटा
- वर्ष 1991 संकट: वर्ष 1991 का संकट अधिक घरेलू मांग के कारण आयात में कमी और चालू खाता घाटे (CAD) के बढ़ने के कारण हुआ।
- विश्वास की कमी के कारण धन का आउटफ्लो शुरू हो गया जिस कारण CAD के वित्तपोषण हेतु भंडार में तेज़ी से गिरावट हुई।
- मांग में गिरावट का सामना करते हुए, राजकोषीय घाटे को बढ़ाना उचित है। सरकार ने पिछले साल राजकोषीय घाटे को बढ़ाकर 9.6% करने की अनुमति दी थी।
समष्टि आर्थिक स्थिति
- वर्ष 1991 अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें का संकट: भारत को राजकीय कर्ज (Default on Sovereign Debt) में चूक से बचने के लिये टनों सोना गिरवी रखना पड़ा। तब भारत के पास महत्त्वपूर्ण आयातों का भुगतान करने के लिये विदेशी मुद्रा लगभग समाप्त हो गई थी।
- वर्ष 2021 का संकट: वर्तमान मे अर्थव्यवस्था तीव्र गति से सिकुड़ रही है, केंद्र सरकार राज्यों के प्रति अपनी राजस्व प्रतिबद्धताओं में चूक कर रही है।
- आज भारत में बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है एवं नौकरियाँ दिन-ब-दिन खत्म हो रही है; दशकों से गरीबी की दर में गिरावट के बाद अब यह बढ़ती हुई नज़र आ रही है।
सुधारों की आलोचना
- वर्ष 1991 के सुधार: वर्ष 1991 के सुधार पैकेज को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक द्वारा निर्धारित किये जाने के कारण भारी आलोचना का सामना करना पड़ा।
- इसके अलावा, सुधार के रूप में कुछ कंपनियों को पूंजीपतियों को बेचने के कारण आलोचना की गई थी।
आगे की राह
- सार्वजनिक व्यय को बनाए रखना: अल्पावधि में सार्वजनिक व्यय को बनाए रखना विकास को पुनर्जीवित करने की कुंजी है।
- वर्तमान में टीकाकरण के लिये अधिक धन उपलब्ध कराने और मनरेगा की विस्तारित मांग को पूरा करने के लिये सार्वजनिक व्यय अत्यधिक वांछनीय है क्योंकि यह एक सुरक्षा तंत्र साबित हो रहा है।
- साथ ही, अगले तीन वर्षों में घाटे को कम करने एवं राजस्व लक्ष्यों को और अधिक वास्तविक स्तर पर संशोधित करने के लिये एक विश्वसनीय रास्ता अपनाने की आवश्यकता है।
- अतः सुधारों की एक लंबी सूची के बदले प्राथमिकता सूची के आधार पर समस्याओं को एक अधिक केंद्रित रणनीतिक दृष्टिकोण से सुलझाने की आवश्यकता है।
- इस संदर्भ में बिजली क्षेत्र, वित्तीय प्रणाली, शासन संरचना और यहाँ तक कि कृषि विपणन में सुधार की आवश्यकता है।
- नीतिगत ढाँचा नए निवेशों का समर्थन करने वाला होना चाहिये ताकि उद्यमियों को जोखिम लेने के लिये प्रोत्साहित किया जा सके।
- शांतिपूर्ण वातावरण और सामाजिक एकता जैसे गैर-आर्थिक कारक भी प्रासंगिक हैं। अतः सरकार को इन सभी मोर्चों पर काम करना शुरू कर देना चाहिए।
- इस संदर्भ में अगले छह महीनों के भीतर एयर इंडिया, बीपीसीएल और कॉनकॉर जैसे सार्वजनिक उपक्रमों में सरकार विनिवेश कर सकती है। इस प्रतिबद्धता के साथ कि अगले पाँच वर्षों के लिये हर साल दो दर्जन सार्वजनिक उपक्रमों को 'मारुति मॉडल' में विभाजित किया जाएगा।
- इससे सरकार को अरबों रुपये के निवेश योग्य अधिशेष पैदा करने में मदद मिलेगी।
निष्कर्ष
वर्ष 1991 के सुधारों ने अर्थव्यवस्था को संकट से उबारने और फिर गति पकड़ने में मदद की। वर्तमान समय भी एक विश्वसनीय नए सुधार एजेंडे की रूपरेखा तैयार करने का समय है जो न केवल जीडीपी को महामारी के संकट के पूर्व-स्तर पर वापस लाएगा बल्कि, यह भी सुनिश्चित अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें करेगा कि विकास दर महामारी की शुरुआत के समय की तुलना में अधिक हो।
अभ्यास प्रश्न: वर्ष 1991 के आर्थिक सुधारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को पुनः सक्रिय किया एवं लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकाला। वर्तमान में जहाँ भारत एक महामारी के दौरान आर्थिक संकट से जूझ रहा है, वहीं पूर्व की घटना से यह सबक लेने का समय है कि क्या सुधार किया जाए और कैसे? चर्चा कीजिये।
पैसा उधार पाने के टॉप 5 तरीके – तुरंत मिलेगा उधार पैसा
आपको चाहे किसी भी कारण की वजह से पैसा उधार चाहिए, इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आप आसानी से पैसे उधार ले पाएंगे। जब इंसान का बुरा financial दौर आता है तो उसे पैसे की मदद चाहिए होती है और वो यही सोचता है की कहीं से उधार पैसे मिल जाये तो इस बुरे financial दौर से बच पाउं। अगर आप भी इन्हीं लोगों में से एक हैं तो आज हम आपको पैसे उधार पाने के बारे में पूरी जानकारी देंगे और यह भी बतायंगे की कैसे आप अपनी आर्थिक स्तिथि को सुधार सकते हैं.
Table of Contents
पैसा उधार चाहिए ये हैं बेस्ट तरीके
इस पोस्ट में 5 बेहतरीन तरीके बताये गए हैं जिनकी मदद से आप पैसे उधार पा सकते हैं और अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बना सकते हैं. इस लिस्ट में कई ऐसे तरीके हैं जिनके जरिये आप 1 से 2 दिन के अंदर पैसे तुरंत पा सकते हैं. जब भी आप किसी से पैसे उधार लेते हैं तो आपको भारी ब्याज भी चुकाना पड़ता है लेकिन इन तरीकों से आप कम ब्याज में पैसे उधार ले सकते हैं.
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अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें
अपनी और अपने घर की आर्थिक स्तिथि को सुधारने के लिए 3 चीजें कर सकते हैं. इन 3 चीजों को करने के बाद आप देखेंग की आपको किसी से उधार मांगने की जरूरत नहीं पड़ेगी बल्कि आप दूसरों को उधार दे सकेंगे।
1. पैसा Save करें
एक एक बहुत ही सिंपल तरीका है ज्यादातर लोग इसकी अहमियत जानते भी है लेकिन फिर भी वो पैसे जमा करने में असमर्थ रहते हैं. पैसे save करने से आप मुश्किल वक़्त में दूसरों से उधार पैसे लेने से बच सकते हैं।
2. फालतू खर्चों से बचें
कई बार हम ऐसी चीजें खरीद लेते हैं या फिर उन चीजों पर पैसे बर्बाद करते हैं जिनकी हमें कोई जरूरत ही नहीं होती है और जब बाद में पैसे ख़त्म हो जाते हैं फिर हमें पछतावा होता है. इसीलिए जितना हो सके फालतू चीजों पर पैसे बर्बाद करने से बचें।
3. महीने का बजट बनाएं
आप महीने के शुरुआत में पूरे महीने का बजट बनायें और उसी बजट के अनुसार चलें। बजट में क्या क्या जरूरी है और कौन सी चीजें जरूरी नहीं है, इनको अलग करें जिससे की आप महीने के लास्ट में पता कर पाएं की आपने कहाँ पर कितने पैसे खर्च किये हैं.
पैसा उधार पाने के टॉप 5 तरीके निष्कर्ष
आजकल बहुत सारे फ्रॉड loan देने वाले apps और कंपनी है जिसकी वजह से मासूम लोग फस जाते है. हमने इस पोस्ट में आपको पैसे उधार लेने के genuine तरीकों के बारे में बताया है जिससे आप फ्रॉड तरीकों से बच सकें। भविष्य में हम इस पोस्ट में पैसे उधार लेने के और भी बेस्ट तरीके शामिल करेंगे तो इस पोस्ट को बुकमार्क जरूर कर लें.
सरकार द्वारा किए गए उपायों के कारण आर्थिक स्थिति में तेजी से हो रहा सुधार
डा. अनिल जैन। कोविड महामारी के बाद ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि मध्य वर्ग पर इसका सबसे अधिक आर्थिक असर पड़ेगा, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी सोच और आर्थिक विकास की नीतियों के चलते अब मध्य वर्ग के सपनों को उम्मीद के पंख लगते दिख रहे हैं। निश्चित तौर पर कोविड महामारी का असर केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में देखने को मिला। दुनिया के कई देशों की आर्थिकी जिस तरीके से चरमरा गई थी उनके मुकाबले भारत ने अपनी आर्थिक स्थिति को कम समय में ही पटरी पर ला दिया है। यह भी कहा जा रहा है कि उच्च वर्ग को किसी प्रकार की दिक्कत नहीं है और निम्न वर्ग की सुध सरकार ले रही है। वहीं सबका साथ सबका विकास के सवरेपरि सोच ने मध्य वर्ग की उम्मीदों को भी पूरा किया है।
अर्थव्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए सरकार के निर्णयों से व्यापार करने में आसानी, प्रत्यक्ष करों में सुधार, कौशल विकास के जरिये रोजगार की उपलब्धता, बुनियादी ढांचे पर हो रहे खर्च से आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होने के पूरे संकेत मिल रहे हैं। एक रोचक तथ्य यह है कि तमाम संकटों के बावजूद हमारे देश की युवा पीढ़ी आशावादी नजर आई। एक सर्वे में भी इस बात का जिक्र है कि कोविड महामारी के कारण हम सबसे खराब स्थिति से गुजर चुके हैं, लेकिन अब चीजों को सुधरने में वक्त लगेगा। आशावादी भारतीयों के कारण ही सरकार द्वारा समय समय पर किए गए सिलसिलेवार उपायों और नीतिगत सुधारों के कारण आर्थिक स्थिति में तेजी से सुधार हो रहा है। जो संकेत मिल रहा है उसी के आधार पर भारतीय रिजर्व बैंक ने वर्ष 2021-22 के लिए 9.5 प्रतिशत की विकास दर के अनुमान को बरकरार रखा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं मध्य वर्ग की ताकत का बखान करते हैं। वे कहते हैं कि मध्य वर्ग को नए अवसर चाहिए, अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें उसको खुला मैदान चाहिए और सरकार लगातार इस वर्ग के सपनों को पूरा करने के लिए काम कर रही है। मध्य वर्ग को जितने अवसर मिलते हैं, वो कई गुना ताकत के साथ उभर कर आते हैं। मध्य वर्ग चमत्कार करने की ताकत रखता है। इसलिए सरकार उन्हें नए अवसर मुहैया कराने और सबको बराबरी का मौका देने के लिए काम कर रही है। शहर में रहने वाले गरीब हों या मध्य वर्ग, इन सबका सबसे बड़ा सपना होता है, अपना घर। इसके लिए सरकार ने वर्ष 2022 तक हर वर्ग के लिए अपना घर हो, यह सुनिश्चित करने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत कम ब्याज दरों पर आवास ऋण का एलान किया है। इसी तरह ग्रामीण क्षेत्रों में नया घर बनाने या घर के विस्तार के लिए दो लाख रुपये तक के ऋण पर ब्याज दरों में छूट दी गई है। ज्यादातर नौकरीपेशा लोग अपनी भविष्य निधि से घर बनाने के लिए पैसा नहीं निकाल पाते थे, लेकिन मोदी सरकार ने घर बनाने के लिए 90 फीसद तक पैसा निकालने की सुविधा दी है। इसी तरह से ईपीएफ अंशधारक भी मकान खरीदने या फिर मकान बनवाने और प्लाट खरीदने के लिए अपनी राशि में से 90 प्रतिशत तक रकम निकाल सकते हैं।
मध्य वर्ग की कमर तोड़ने में रियल एस्टेट का भी बड़ा योगदान रहा। बड़ी संख्या में नौकरीपेशा लोगों ने मकान बुक करा लिए और ईएमआइ भी चालू हो गई, जबकि दूसरी ओर मकान का किराया भी दे रहे हैं, लेकिन समय से मकान नहीं मिल पाने के कारण उनकी आर्थिक स्थिति खराब होती गई। आज रियल एस्टेट कानून के जरिये बिल्डरों की जवाबदेही तय की जा रही है, ताकि समय से लोगों को रहने के लिए आवास मिल जाए। अब बिल्डर खरीदारों पर मनमानी शर्ते भी नहीं थोप सकेंगे, वहीं निर्माण सामग्री का हवाला देकर मकान की कीमत नहीं बढ़ा सकेंगे।
भारत के आर्थिक विकास की सूई अब छोटे शहरों की ओर घूम रही है। सरकार ऐसे जिलों की पहचान कर चुकी है जो विकास की दृष्टि से पिछड़े हुए हैं। जब पिछड़े जिले विकास की मुख्यधारा से जुड़ जाएंगे तो निश्चित तौर पर देश के आर्थिक विकास में इनकी भूमिका बढ़ेगी और बड़ी संख्या में युवा जो रोजगार की तलाश में बड़े शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं वह पलायन भी कम होगा। छोटे शहरों के विकास से जब लोगों को रोजगार मिलेगा तो उनकी क्रय शक्ति भी बढ़ेगी। जिन उत्पादों की आज केवल बड़े शहरों में मांग बढ़ी हुई है उन उत्पादों को अब छोटे शहरों के उपभोक्ता भी आसानी से खरीद सकेंगे। सरकार की मेक इन इंडिया की जो पहल है वह भी भारत की आर्थिक समृद्धि के लिए एक बड़ा कदम है।
सरकार के प्रोत्साहन से बड़ी संख्या में मध्य वर्ग स्टार्टअप इंडिया का लाभ ले रहा है। ब्याज दरें कम होने और कर्ज के नियम आसान होने से उसे व्यवसाय करने में किसी तरह की कठिनाई नहीं हो रही। कई शोध में यह बात सामने आ चुकी है कि भारत की आर्थिक वृद्धि की रफ्तार को कोई तय करेगा तो वह मध्य वर्ग है। इसलिए सरकार का फोकस मध्य वर्ग को राहत देने पर है। मध्य वर्ग अगर मजबूत हुआ तो आर्थिक रफ्तार अपने आप तेज होगी। आम बजट में जहां मध्य वर्ग को ध्यान में रखते हुए कई योजनाओं को सुचारु रूप से चलाने के लिए बजट का प्रविधान किया गया है, वहीं बीच बीच में आर्थिक राहत का एलान भी सरकार करती रही है।
कृषि कानूनों के पूरे प्रकरण ने भारत की आंतरिक फूट को उजागर किया है, अब इसे पाटने का समय है
भारत अपनी आर्थिक वृद्धि और राष्ट्रीय सुरक्षा पर मंडराती चुनौतियों का सामना सबसे पहले अपनी आंतरिक एकता को मजबूत करने की अधिकतम कोशिश किए बिना नहीं कर सकता.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी | दिप्रिंट
कुछ लोगों को लग सकता है कि तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फैसला हमारे लोकतंत्र की जीत है. राजनीतिक अर्थव्यवस्था के अंदर सक्रिय शक्तियों ने अपनी लोकतांत्रिक शक्ति का प्रदर्शन कर दिया है. लेकिन भारत को शायद नुकसान हुआ है. क्योंकि, यह तो निर्विवाद ही है कि भारत के लिए आर्थिक तथा रणनीतिक महत्व रखने वाले कृषि क्षेत्र को सुधारों की सख्त जरूरत है. भारत को जिस दूसरी चीज का ख्याल रखना होगा वह यह है कि कमजोर सरकार, नागरिक असंतोष, महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों को लागू करने में असमर्थता का लाभ दुश्मन उठा सकते हैं.
कुछ दशकों से सरकार ने किसानों को सुरक्षा देने के नाम पर उन्हें सीमाओं में कैद कर रखा है. सुरक्षा के पीछे तर्क यह दिया जाता रहा है कि प्रगति के लिए यह जरूरी है. लेकिन भारतीय किसानों को यह फैसला करने की छूट देनी चाहिए कि वे क्या उगाना चाहते हैं और अपनी उपज किसे बेचना चाहते हैं. सुधारों के अभाव के चलते किसानों की हालत खराब हुई है. कृषि क्षेत्र में अहम नीतिगत सुधारों की जरूरत भी बाकी क्षेत्रों में सुधारों की जरूरत की तरह लंबे समय से महसूस की जा रही है. चंद बड़े किसानों को छोड़ भारत के बहुसंख्य किसानों की स्थायी तकलीफें और बदहाली देश के राजनीतिक तबके के लिए चिंता का कारण होना चाहिए.
किसानों, उनके आश्रितों, और देश भर में कृषि के कारोबार को सहारा देने वाली व्यवस्था से जुड़े लोगों का असंतोष भारत की आंतरिक फूट को और गहरा कर सकता है. किसानों के आंदोलन पर किसी तरह का सांप्रदायिक ठप्पा जड़ने से बचना चाहिए. बेशक, यह सब कहना आसान है, करना कठिन.
वास्तविक है बाहरी खतरा
भारत के योजनाकारों में इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं रहना चाहिए कि चीन और पाकिस्तान हमें कमजोर देखना चाहते हैं. चीन के इरादे अमेरिका के साथ उसकी व्यापक, विश्वस्तरीय होड़ में से पैदा हुए हैं. पाकिस्तान के इरादे उसकी इस मान्यता से उपजे हैं कि ताकतवर भारत उसके वजूद के लिए ही खतरा है. इसलिए दोनों देश भारत के विकास और प्रगति में अड़ंगा लगाने की कोशिश करेंगे. इसलिए, भूगोल और आतंकवाद पर आधारित असुरक्षा ही इन मकसदों को पूरा अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें करने का एकमात्र साधन है. लेकिन सरकारों और राजनीतिक दलों के विभिन्न फैसलों से ऐसा लगता है कि भारत का राजनीतिक वर्ग इसकी बाह्य सुरक्षा के लिए उभर रही चुनौतियों के बारे में पर्याप्त रूप से सचेत नहीं है.
वक्त आ गया है कि प्रधानमंत्री मोदी सभी दलों के सांसदों के साथ बंद कमरे वाली एक बैठक करें और उन्हें भारत के रणनीतिक परिदृश्य की जानकारी दें. भारत अपने लिए आंतरिक तथा बाह्य खतरों के बारे में क्या सोचता है, इसकी व्याख्या प्रस्तुत की जाए. यह आंतरिक एकता को मजबूत करने की जरूरत को उजागर करेगा. बढ़ते बाहरी खतरे के खिलाफ एकजुट होने के लिए देश के राजनीतिक वर्ग को अपने मतभेद भुलाने पड़ेंगे. उन्हें असहमति के लिए भी सहमत होना होगा और देशहित के लिए जब तक जरूरी हो, अपने मतभेदों को परे रखना होगा. वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करने वाले हिंदू बहुसंख्यकवाद और अन्य विभाजनकारी तत्वों से जुड़े सैद्धांतिक मतभेदों को भी राजनीतिक वर्ग के अंदर की आपसी समझदारी के तहत ठंडे बस्ते में डालने की जरूरत है.
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एकता नहीं होगी तो राजकाज के उन औजारों को मजबूत करने की गति धीमी पड़ जाएगी, जो भारत की भौगोलिक अखंडता, संप्रभुता, मूल्य व्यवस्था, संस्कृति और विकास की क्षमता को मजबूत करने के लिए जरूरी हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला पंजाब जैसे सीमावर्ती राज्य में फूट डालने वाली ताकतों को कमजोर करने की ओर बढ़ाया गया एक कदम है.
आमतौर पर भारत अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें की एकता को खतरा उसकी विविधता से उभरने वाले कारणों से पैदा होता है. धर्म भारत के लिए सबसे बड़ी विभाजनकारी ताकत है. यह धर्म के आधार पर मजबूत होते ध्रुवीकरण से स्पष्ट है. दुर्भाग्य से यह चुनावी ताकत का आधार भी बन गया है, और इसे जनसंख्या तथा बेरोजगारी में वृद्धि का सहारा मिलता है. भारत की बेरोजगार आबादी का बड़ा हिस्सा उग्रवादी विचारों की ओर आकर्षित होता है और धर्म की रक्षा के लिए खड़े सैनिक की भूमिका अपना लेता है तथा दूसरे धर्मों पर हमला करने में भी आगे रहता है.
गलती का एहसास नहीं
प्रधानमंत्री मोदी ने कृषि सुधार के कदमों की विफलता के लिए किसानों के उस छोटे-से वर्ग को जिम्मेदार बताया है जिन्हें मुक्त व्यापार और ठेके की खेती से होने वाले फायदे नहीं दिख रहे हैं. लेकिन उन्होंने यह नहीं कहा कि सरकार किसानों से संवाद करने में विफल रही. यह विफलता तीन पहलू में दिखती है और फूट को जन्म देती है.
पहली बात तो यह है कि भाजपा और विपक्ष के बीच संवाद का अभाव है. बड़े और अहम फैसलों को संसद में बिना विस्तृत बहस के जबरन मंजूरी दिलाना आज एक चलन बन गया है. ऐसा लगता है कि दोनों पक्ष एक-दूसरे से नहीं बल्कि एक-दूसरे पर ही बात करते हैं. आमने-सामने बैठ कर समझदारी भरी बातचीत नहीं होती. इसका नतीजा यह होता है कि बातचीत को सार्थक बनाने और बेहतर नतीजे देने में सहायता करने वाले, असहमति के विचार सामने नहीं आ पाते.अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें
दूसरा पहलू संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य संबंधों का है. राज्यों से सलाह-मशविरा न करना केंद्र सरकार की कार्यशैली का हिस्सा बन गया है. इससे काफी असंतोष पैदा हुआ है और कई राज्यों ने अवज्ञापूर्ण रवैया अपना लिया है. यह खतरनाक स्थिति है और यह फूट को और गहरा कर सकती है.
तीसरा पहलू सरकार और जनता के बीच के रिश्ते का है. जिन लोगों के हित प्रभावित होते हों उनसे बिना कोई बातचीत किए अचानक फैसले थोप कर हैरत में डाल देना सरकार की कोई असामान्य शासन शैली नहीं रह गई है. इसके साथ जुड़ा है मीडिया का हमला, जो पूरे प्रकरण को अपना रंग देने की कोशिश करता है और मुख्यतः सरकार समर्थक विचारों को आगे बढ़ाता है. अच्छे दिन का एहसास कराने के लिए आंकड़ों की हेराफेरी भी लोगों को गलत सूचना देने, उन्हें आशान्वित और भ्रमित रखने का एक और तरीका बन गया है.
आंतरिक और बाहरी, दोनों मोर्चों पर भारत की राजनीतिक सत्ता राष्ट्रहित की खातिर सूचना को शासन के औज़ार के रूप में इस्तेमाल करने की अक्षमता से ग्रस्त है. ऐसा तब है जबकि सूचना के इस युग में इसके महत्व को व्यापक तौर पर मान्य किया जा चुका अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें है.
वास्तव में, यह एक विरोधाभास ही है क्योंकि राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने आईटी सेल्स की मदद से अपने दलगत हितों को तेजी से आगे बढ़ा रही हैं. दूसरी ओर, केंद्र तथा राज्य सरकारों के सार्वजनिक सूचना तंत्र में सुधार की काफी गुंजाइश है. सूचना के दायरे का प्रबंधन और संचालन करने के लिए प्रतिभाओं को आकर्षित करने में राजनीतिक दलों ने सरकारों को पीछे छोड़ दिया है.
भारत अपनी आर्थिक वृद्धि और राष्ट्रीय सुरक्षा पर मंडराती चुनौतियों का सामना सबसे पहले अपनी आंतरिक एकता को मजबूत करने की अधिकतम कोशिश किए बिना नहीं कर सकता. राजनीतिक वर्ग को जागना और सक्रिय होना पड़ेगा. प्रधानमंत्री मोदी को विदेशी नेताओं को झप्पी देना तो बहुत पसंद है, अब वे आगे बढ़कर देश में विपक्ष के कुछ नेताओं को भी गले लगाएं तो इससे लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी, बेशक इसकी कीमत मामूली ही होगी.
(लेफ्टिनेंट जनरल (रिटा.) डॉ. प्रकाश मेनन तक्षशिला संस्थान, बेंगलुरू डायरेक्टर स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के पूर्व सैन्य सलाहकार हैं. वह @prakashmenon51 पर ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
Business Idea: योग इंस्ट्रक्टर बन सुधारें लोगों की सेहत और अपनी आर्थिक स्थिति
Business Idea: योग बिजनेस शुरू करने के लिए आपका योग में प्रशिक्षित होना जरूरी है. आपके पास योग में डिग्री या सर्टिफिकेट होगा तो आप आसानी से योगा ट्रेनिंग सेंटर (Yoga Training Centre) खोल सकते हैं. इसके अलावा आप ऑनलाइन भी लोगों को योग सिखा सकते हैं.
- News18Hindi
- Last Updated : June 17, 2022, 17:59 IST
नई दिल्ली. योग से न केवल आपका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य सुधर सकता है बल्कि यह आपकी आर्थिक स्थिति को भी अब सुधार सकता है. दुनिया भर में योग की लोकप्रियता के साथ ही योग सिखाने वालों की मांग भी बढ़ रही है. प्रशिक्षित योग इंस्ट्रक्टर आज लोगों को योग सीखाकर खूब मुनाफा कमा रहे हैं. अगर आपका इरादा भी नौकरी की बजाय अपना कोई काम करना है तो आप भी योग इंस्ट्रक्टर बन सकते हैं.
ये एक ऐसा बिजनेस है जिससे आप घर बैठे ऑनलाइन भी योग क्लासेज लगाकर अच्छी कमाई कर सकते हैं. वर्तमान समय में योग इंडस्ट्री सबसे तेजी से ग्रोथ करने वाली इंडस्ट्रीज में से एक बन चुकी है. योग के जरिए दुनियाभर में लोग स्वस्थ जीवन जी रहे हैं और देश और विदेशों में योग सिखाकर लोग खूब कमाई भी कर रहे हैं.
योग का करना होगा कोर्स
योग बिजनेस शुरू करने के लिए आपका योग में प्रशिक्षित होना जरूरी है. आपको योग का कोई कोर्स करना चाहिए. आजकल देश में बहुत से संस्थान योग के कोर्स चला रहे हैं. आपके पास योग में डिग्री या सर्टिफिकेट होगा तो आप आसानी से योगा ट्रेनिंग सेंटर (Yoga Training Center) खोल सकते हैं.
बनाना होगा बिजनेस प्लान
जब आपके पास योग की डिग्री या सर्टिफिकेट हो तो आपको योग से कमाई करने का एक अच्छा बिजनेस प्लान बनाना होगा. इसमें आपको यह निर्णय लेना होगा कि आप योग सेंटर खोलेंगे, लोगों के पर्सनल योग इंस्ट्रक्टर बनेंगे या अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें फिर आप ऑनलाइन योग क्लासेज चलाएंगे. अपनी क्षमता और बजट के अनुसार, इनमें से जो विकल्प आपको जंचता हो उसका चुनाव करें.
अगर आप आपने योग सेंटर खोलने का निर्णय किया है तो फिर आपको इसके लिए सही लोकेशन का सही चयन करना होगा. योग सेंटर ऐसी जगह होना चाहिए जहां लोग आसानी से आ सकें और वो इलाका सुरक्षित भी हो. अगर आपने ऑनलाइन ही योग ट्रेनिंग देने की सोची है तो आपको अपनी वेबसाइट बनानी होगी और यूट्यूब चैनल शुरू करना होगा. इसके अलावा आपको अपनी वेबसाइट के सोशल मीडिया पेज भी बनाने होंगे ताकि आपके बिजनेस के बारे में ज्यादा से ज्यादा लोगों को पता चले और वे आपके साथ जुड़ें.
अगर आपने लोगों को पर्सनल योग ट्रेनिंग देने की सोची है तो फिर आपको पहले ऐसे लोगों की पहचान करनी होगी जो आपके संभावित ग्राहक हो सकते हैं. आजकल पर्सनल ट्रेनर बहुत अमीर लोग ही रखते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि अब ऑनलाइन योग इंस्ट्रक्टर काफी ज्यादा हो गए हैं और लोग उनकी सेवाएं ले लेते हैं.
खर्च और कमाई
बिजनेस शुरू करने के लिए ज्यादा निवेश नहीं करना होता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इसके लिए मशीनें और उपकरण नहीं खरीदने होते हैं. आप आसानी से 100000 लाख रुपये में ही योग सेंटर शुरू कर सकते हैं. इतने रुपये में आप योग सेंटर की जगह का किराया भी दे पाएंगे और अपने सेंटर की वेबसाइट भी बना सकते हैं. इसके साथ ही योगा मैट आदि भी आ जाएंगे.
योग इंस्ट्रक्टर के रूप में खुद को स्थापित करने के लिए आरंभ में आपको थोड़ा संघर्ष करना होगा. शुरूआत में आपकी कमाई कम होगी. ऐसा इसलिए होगा क्योंकि योग सेंटर में शुरू में कम ग्राहक आपके पास होंगे और ऑनलाइन भी शुरू में आपके सब्सक्राइबर्स कम ही होंगे. ज्यों-ज्यों आपका नाम होगा तो आपकी कमाई बढ़ेगी. एक अनुमान के अनुसार एक ठीक-ठाक इंस्ट्रक्टर भी महीने में आराम से 50 हजार रुपये कमा लेता है.
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