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विदेशी मुद्रा छोटे खाते क्या हैं

विदेशी मुद्रा छोटे खाते क्या हैं
पीएम मुद्रा योजना: Finance Minister निर्मला सीतारमण (File Photo – PTI)

रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?

अमेरिकी डॉलर विदेशी मुद्रा छोटे खाते क्या हैं को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं

रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?

विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा पर असर पड़ता है. अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी का रुतबा हासिल है. इसका मतलब है कि निर्यात की जाने वाली ज्यादातर चीजों का मूल्य डॉलर में चुकाया जाता है. यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर.

अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं. यह अधिकतर जगह पर आसानी से स्वीकार्य है.

इसे एक उदाहरण से समझें
अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में भारत के ज्यादातर बिजनेस डॉलर में होते हैं. आप अपनी जरूरत का कच्चा तेल (क्रूड), खाद्य पदार्थ (दाल, खाद्य तेल ) और इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम अधिक मात्रा में आयात करेंगे विदेशी मुद्रा छोटे खाते क्या हैं तो आपको ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ेंगे. आपको सामान तो खरीदने में मदद मिलेगी, लेकिन आपका मुद्राभंडार घट जाएगा.

मान लें कि हम अमेरिका से कुछ कारोबार कर रहे हैं. अमेरिका के पास 68,000 रुपए हैं और हमारे पास 1000 डॉलर. अगर आज डॉलर का भाव 68 रुपये है तो दोनों के पास फिलहाल बराबर रकम है. अब अगर हमें अमेरिका से भारत में कोई ऐसी चीज मंगानी है, जिसका भाव हमारी करेंसी के हिसाब से 6,800 रुपये है तो हमें इसके लिए 100 डॉलर चुकाने होंगे.

अब हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में सिर्फ 900 डॉलर बचे हैं. अमेरिका के पास 74,800 रुपये. इस हिसाब से अमेरिका के विदेशी मुद्रा भंडार में भारत के जो 68,000 रुपए थे, वो तो हैं ही, लेकिन भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में पड़े 100 डॉलर भी उसके पास पहुंच गए.

अगर भारत इतनी ही राशि यानी 100 डॉलर का सामान अमेरिका को दे देगा तो उसकी स्थिति ठीक हो जाएगी. यह स्थिति जब बड़े पैमाने पर होती है तो हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में मौजूद करेंसी में कमजोरी आती है. इस समय अगर हम अंतर्राष्ट्रीय बाजार से डॉलर खरीदना चाहते हैं, तो हमें उसके लिए अधिक रुपये खर्च करने पड़ते हैं.

कौन करता है मदद?
इस तरह की स्थितियों में देश का केंद्रीय बैंक RBI अपने भंडार और विदेश से खरीदकर बाजार में डॉलर की आपूर्ति सुनिश्चित करता है.

आप पर क्या असर?
भारत अपनी जरूरत का करीब 80% पेट्रोलियम उत्पाद आयात करता है. रुपये में गिरावट से पेट्रोलियम उत्पादों का आयात महंगा हो जाएगा. इस वजह से तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ा सकती हैं.

डीजल के दाम बढ़ने से माल ढुलाई बढ़ जाएगी, जिसके चलते महंगाई बढ़ सकती है. इसके अलावा, भारत बड़े पैमाने पर खाद्य तेलों और दालों का भी आयात करता है. रुपये की कमजोरी से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों और दालों की कीमतें बढ़ सकती हैं.

यह है सीधा असर
एक अनुमान के मुताबिक डॉलर के भाव में एक रुपये की वृद्धि से तेल कंपनियों पर 8,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ता है. इससे उन्हें पेट्रोल और डीजल के भाव बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ता है. पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतों में 10 फीसदी वृद्धि से महंगाई करीब 0.8 फीसदी बढ़ जाती है. इसका सीधा असर खाने-पीने और परिवहन लागत पर पड़ता है.

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प्रधानमंत्री मुद्रा योजना: वक्त पर EMI दे रहे हैं छोटे कारोबारी! 7 वर्षों में NPA केवल 3.3%

प्रधानमंत्री मुद्रा योजना: वक्त पर EMI दे रहे हैं छोटे कारोबारी! 7 वर्षों में NPA केवल 3.3%

प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (Pradhan Mantri MUDRA Yojana) को लॉन्च हुए 7 वर्ष हो चुके हैं. इन 7 वर्षों में मुद्रा ऋण के उधारकर्ताओं, अनिवार्य रूप से सूक्ष्म और लघु उद्यमों ने बैंकों को अपनी ईएमआई (इक्वेटेड मंथली इन्स्टॉलमेंट्स) का भुगतान किया है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त आंकड़ों से पता चलता है कि मुद्रा ऋण के लिए बैंकों के नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स, पूरे बैंकिंग सेक्टर के औसत एनपीए से कम हैं. मुद्रा लोन के लिए बैंकों के एनपीए में कोविड-19 महामारी के दौरान एक्सटेंड किए गए ऋण भी शामिल हैं, जब छोटे उद्यम सबसे बुरी तरह प्रभावित थे.

8 अप्रैल, 2015 को योजना के लॉन्च के बाद से सभी बैंकों (सार्वजनिक, निजी, विदेशी, राज्य सहकारी, क्षेत्रीय ग्रामीण और लघु वित्त) के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत खराब ऋण (Bad Loan) का आंकड़ा 30 जून 2022 तक 46,053.39 करोड़ रुपये तक पहुंच गया. यह आंकड़ा इस अवधि के दौरान योजना के तहत हुए 13.64 लाख करोड़ रुपये के कुल डिस्बर्समेंट विदेशी मुद्रा छोटे खाते क्या हैं का केवल 3.38 प्रतिशत है. पूरे बैंकिंग सेक्टर पर मौजूद कुल एनपीए की बात करें तो यह वित्त वर्ष 2021—22 के दौरान कुल लोन डिस्बर्समेंट का 5.97 प्रतिशत रहा.

वित्त वर्ष 2021-22 की तुलना में इससे पहले के 6 वर्षों में बैंकिंग क्षेत्र का सकल एनपीए बहुत अधिक था. यह वित्त वर्ष 2020-21 में कुल डिस्बर्समेंट का 7.3 प्रतिशत, 2019-20 में 8.2 प्रतिशत, 2018-19 में 9.1 प्रतिशत, 2017-18 में 11.2 प्रतिशत और 2016-17 में 9.3 प्रतिशत और 2015-16 में 7.5 प्रतिशत था. .

3 कैटेगरी के तहत मिलता है लोन

मुद्रा योजना में लोन की तीन कैटेगरी हैं, और उनके तहत मिलने वाला लोन अमाउंट इस तरह है…

शिशु लोन: 50,000 रुपये तक के कर्ज के लिए

किशोर लोन: 50,001 से 5 लाख रुपये तक के कर्ज के लिए

तरुण लोन: 5 लाख से 10 लाख रुपये तक के कर्ज के लिए

इन तीनों कैटेगरी में शिशु ऋणों के मामले में एनपीए, लोन डिस्बर्समेंट का 2.25 प्रतिशत रहा, जो सबसे कम है. वहीं किशोर ऋणों के मामले में एनपीए की दर सबसे ज्यादा 4.49 प्रतिशत रही. तरुण ऋणों के लिए खराब ऋण, ​लोन डिस्बर्समेंट का 2.29 प्रतिशत था.

कुछ दिलचस्प पॉइंट

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय के तहत वित्तीय सेवा विभाग द्वारा प्राप्त आरटीआई प्रतिक्रिया के तहत डेटा 5 दिलचस्प रुझानों का खुलासा करता है:

1. इस वर्ष 30 जून तक दिए गए सभी मुद्रा ऋणों के मामले में मूल्य के संदर्भ में लगभग 46 प्रतिशत हिस्सा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का रहा. उनकी बैलेंस शीट में 31,025.30 करोड़ रुपये का बैड लोन हो गया, जो उनके 6,23,279.85 करोड़ रुपये के डिस्बर्समेंट का 4.98 प्रतिशत है. कुल एडवांसेज के प्रतिशत के रूप में, यह समग्र रूप से बैंकिंग क्षेत्र के लिए 5.97 प्रतिशत से भी कम है.

2. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की तुलना में निजी क्षेत्र के बैंकों की वसूली कहीं बेहतर है. उनके लिए, सात साल की अवधि के दौरान खराब ऋण या एनपीए 6,469.2 करोड़ रुपये पर रहे, जो उनके 4,90,652.6 करोड़ रुपये के डिस्बर्समेंट का केवल 1.32 प्रतिशत है. इस वर्ष 30 जून तक दिए गए सभी मुद्रा ऋणों के मामले में मूल्य के संदर्भ में लगभग 36 प्रतिशत हिस्सा निजी क्षेत्र के बैंकों का रहा.

3. शिशु, किशोर और तरुण लोन कैटेगरीज में कुल 19.78 करोड़ लाभार्थियों (ऋण खातों के रूप में भी संदर्भित) में से केवल 82.98 लाख ऋण खाते या 4.19 प्रतिशत बैड लोन में तब्दील हुए. इसका मतलब है कि 100 लाभार्थियों में से केवल 4 लाभार्थियों ने ही पुनर्भुगतान में चूक की.

4. निजी क्षेत्र के बैंक मुद्रा लोन के 10.46 करोड़ लाभार्थियों या कुल 19.78 करोड़ ऋण खातों में से लगभग 53 प्रतिशत को कवर करते हैं. इससे विदेशी मुद्रा छोटे खाते क्या हैं पता चलता है कि निजी क्षेत्र के बैंकों ने छोटे मूल्यवर्ग के ऋण दिए, लेकिन उनका दायरा बहुत व्यापक था. इसकी पुष्टि आंकड़ों से होती विदेशी मुद्रा छोटे खाते क्या हैं है. शिशु श्रेणी के ऋण में निजी क्षेत्र के बैंकों की हिस्सेदारी बहुत अधिक है. शिशु श्रेणी के तहत 15.39 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को 4.21 लाख करोड़ रुपये के लोन वितरित किए गए. इसमें निजी क्षेत्र के बैंकों की हिस्सेदारी लगभग 60 प्रतिशत है.

5. इसके विपरीत, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, मुद्रा लोन के तहत केवल 4.66 करोड़ लाभार्थियों को या कुल मुद्रा ऋण खातों के 24 प्रतिशत से कम को कवर करते हैं. किशोर लोन के डिस्बर्समेंट में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की हिस्सेदारी 35.64 प्रतिशत थी, और तरुण श्रेणी में 61 प्रतिशत थी.

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रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?

अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का विदेशी मुद्रा छोटे खाते क्या हैं प्रयोग करते हैं

रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?

विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा पर असर पड़ता है. अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी का रुतबा हासिल है. इसका मतलब है कि निर्यात की जाने वाली ज्यादातर चीजों का मूल्य डॉलर में चुकाया जाता है. यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर.

अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं. यह अधिकतर जगह पर आसानी से स्वीकार्य है.

इसे एक उदाहरण से समझें
अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में भारत के ज्यादातर बिजनेस डॉलर में होते हैं. आप अपनी जरूरत का कच्चा तेल (क्रूड), खाद्य पदार्थ (दाल, खाद्य तेल ) और इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम अधिक मात्रा में आयात करेंगे तो आपको ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ेंगे. आपको सामान तो खरीदने में मदद मिलेगी, लेकिन आपका मुद्राभंडार घट जाएगा.

मान लें कि हम अमेरिका से कुछ कारोबार कर रहे हैं. अमेरिका के पास 68,000 रुपए हैं और हमारे पास 1000 डॉलर. अगर आज डॉलर का भाव 68 रुपये है तो दोनों के पास फिलहाल बराबर रकम है. अब अगर हमें अमेरिका से भारत में कोई ऐसी चीज मंगानी है, जिसका भाव हमारी करेंसी के हिसाब से 6,800 रुपये है तो हमें इसके लिए 100 डॉलर चुकाने होंगे.

अब हमारे विदेशी मुद्रा छोटे खाते क्या हैं विदेशी मुद्रा भंडार में सिर्फ 900 डॉलर बचे हैं. अमेरिका के पास 74,800 रुपये. इस हिसाब से अमेरिका के विदेशी मुद्रा भंडार में भारत विदेशी मुद्रा छोटे खाते क्या हैं विदेशी मुद्रा छोटे खाते क्या हैं के जो 68,000 रुपए थे, वो तो हैं ही, लेकिन भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में पड़े 100 डॉलर भी उसके पास पहुंच गए.

अगर भारत इतनी ही राशि यानी 100 डॉलर का सामान अमेरिका को दे देगा तो उसकी स्थिति ठीक हो जाएगी. यह स्थिति जब बड़े पैमाने पर होती है तो हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में मौजूद करेंसी में कमजोरी आती है. इस समय अगर हम अंतर्राष्ट्रीय बाजार से डॉलर खरीदना चाहते हैं, तो हमें उसके लिए अधिक रुपये खर्च करने पड़ते हैं.

कौन करता है मदद?
इस तरह की स्थितियों में देश का केंद्रीय बैंक RBI अपने भंडार और विदेश से खरीदकर बाजार में डॉलर की आपूर्ति सुनिश्चित करता है.

आप पर क्या असर?
भारत अपनी जरूरत का करीब 80% पेट्रोलियम उत्पाद आयात करता है. रुपये में गिरावट से पेट्रोलियम उत्पादों का आयात महंगा हो जाएगा. इस वजह से तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ा सकती हैं.

डीजल के दाम बढ़ने से माल ढुलाई बढ़ जाएगी, जिसके चलते महंगाई बढ़ सकती है. इसके अलावा, भारत बड़े पैमाने पर खाद्य तेलों और दालों का भी आयात करता है. रुपये की कमजोरी से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों और दालों की कीमतें बढ़ सकती हैं.

यह है सीधा असर
एक अनुमान के मुताबिक डॉलर के भाव में एक रुपये की वृद्धि से तेल कंपनियों पर 8,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ता है. इससे उन्हें पेट्रोल और डीजल के भाव बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ता है. पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतों में 10 फीसदी वृद्धि से महंगाई करीब 0.8 फीसदी बढ़ जाती है. इसका सीधा असर खाने-पीने और परिवहन लागत पर पड़ता है.

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Mudra Loan: गरीबों ने नहीं पचाया बैंकों का पैसा, मुद्रा लोन में एनपीए सबसे कम, सात साल में मात्र 3.3 फ़ीसदी

Mudra Loans NPA, BJP Mudra Yojana: कोविड -19 महामारी का सबसे ज्यादा असर छोटे व्यपारियों पर हुआ, लेकिन उसके बावजूद भी इन्होने लोन की किश्त चुकाने की पूरी कोशिश की।

Mudra Loan: गरीबों ने नहीं पचाया बैंकों का पैसा, मुद्रा लोन में एनपीए सबसे कम, सात साल में मात्र 3.3 फ़ीसदी

पीएम मुद्रा योजना: Finance Minister निर्मला सीतारमण (File Photo – PTI)

PM Mudra Loan: मुद्रा योजना (Mudra Yojna) के तहत बैंकों से लोन लिए छोटे व्यपारियों ने बैंकों का पैसा समय से लौटने की कोशिश की है। बता दें कि सात वर्ष पहले ये योजना शुरू की गई थी और इसके तहत छोटे व्यपारियों को लोन दिया गया था। कोविड -19 महामारी (Covid-19) का सबसे ज्यादा असर छोटे व्यपारियों पर हुआ, लेकिन उसके बावजूद भी इन्होने लोन की किश्त चुकाने की पूरी कोशिश की। इसका ही नतीजा है कि मुद्रा योजना का एनपीए (NPA) सबसे कम है। ये पिछले सात सालों में मात्र 3.3 फीसदी है।

अमीरों का NPA 5.97 प्रतिशत

8 अप्रैल 2015 को मुद्रा योजना के लॉन्च के बाद से सभी बैंकों (सार्वजनिक, निजी, विदेशी, राज्य सहकारी, क्षेत्रीय ग्रामीण और लघु वित्त) के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत NPA 30 जून 2022 तक 46,053.39 करोड़ रुपये तक बढ़ गया। इस अवधि के दौरान मुद्रा योजना के तहत 13.64 लाख करोड़ रुपये का कुल ऋण बांटा गया। अगर देखें तो NPA केवल 3.38 प्रतिशत है। ये पूरे बैंकिंग क्षेत्र का लगभग आधा है। 31 मार्च 2022 को समाप्त वर्ष के लिए अमीरों का NPA 5.97 प्रतिशत था।

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पिछले छह वर्षों में बैंकिंग क्षेत्र का ग्रॉस एनपीए 2021-22 की तुलना में बहुत अधिक था। यह 2020-21 में 7.3 प्रतिशत, 2019-20 में 8.2 प्रतिशत, 2018-19 में 9.1 प्रतिशत, 2017-18 में 11.2 प्रतिशत और 2016-17 में 9.3 प्रतिशत और 2015-16 में 7.5 प्रतिशत था।

तीन श्रेणियों में मिलता है मुद्रा लोन

तीन श्रेणियों के भीतर, शिशु ऋण (50,000 रुपये तक) का सबसे कम 2.25 प्रतिशत था और किशोर ऋण (50,001 रुपये से 5 लाख रुपये) उच्चतम 4.49 प्रतिशत था। वहीं तरुण ऋणों के लिए (5 लाख रुपये से 10 लाख रुपये तक) NPA का 2.29 प्रतिशत था। बता दें कि पिछले पांच सालों में बैंकों ने दस लाख करोड़ का लोन बट्टे-खाते (Write Off) में डाला है।

माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी (MUDRA) को 8 अप्रैल 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) द्वारा गैर-कॉर्पोरेट, गैर-कृषि, लघु और सूक्ष्म उद्यमों को 10 लाख रुपये तक का ऋण प्रदान करने के लिए लॉन्च किया गया था। इसे प्रधानमंत्री मुद्रा योजना कहा जाता है और तीन श्रेणियों के तहत ऋण दिया जाता है। शिशु ऋण 50,000 रुपये तक, किशोर ऋण 50,001 रुपये से 5 लाख रुपये तक और तरुण ऋण 5 लाख रुपये से 10 लाख रुपये तक। मुद्रा ऋण के लिए किसी गारंटी की आवश्यकता नहीं होती है और इसलिए इसे बहुत जोखिम भरा माना जाता था।

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