प्रतिभूति बाजार की भूमिका

वित्तीय बाजार क्या है ? Financial Market meaning in hindi .
बाजार किसी अर्थव्यवस्था का वह अंग है, वचनातिरक (fund surplus) पक्ष और अवाभाव (tund scarce) प्रतिभूति बाजार की भूमिका पक्ष के बीच धन का (transaction) होता है। यह लेन-देन व्याज (intrest)अथवा लाभांश (dividend) के आधार पर सम्पन होता है।
Money Market kya hai ?
1. इस भौतिक रूप से विद्यमान बाजार में धन का लघु अवधि (short term) या दीर्घ अवधि (Long term) के लिए हो सकता है। प्रत्येक ऐसा लेन देन जिसकी समय सीमा 1 दिन से 364 दिनों की हो सकती है, लघु अवधि का वित्त बाजार है। इसी बजार को मुद्रा बाजार (Money Market) कहा जाता है।
इसी प्रकार एक वर्ष या इससे अधिक अवधि के इस तरह केे धन के लेन-देन को दीर्घावधिक वित्त बाजार का अंग मानते हैं जो पूँजी बाजार (Capital Market) कहलाता हैं।
* प्रत्येक वित्त बाजार के दो अंग होते हैं- मुद्रा बाजार और पूँजी बाजार- पहला लघु अवधि का वित्त बाजार और दूसरा दीर्घ अवधि का वित्त बाजार है।
* संगठित भारतीय मुद्रा बाजार में वर्तमान में विभिन्न के लिए निम्न संघटक (Instruments) कार्य कर रहे हैं :
बाजार :: वर्ष 1992 में प्रारम्भ हुआ यह बाजार अंतर बैंक (Inter-bank) संघटक है। यह एक अति अल्प अवधि का बाजार है, जिसमें एक दिवसीय धन का लेन-देन होता है। इस बाज़ार में अधिकतम 14 दिनों तक भी उधार लिया जाता है। बैंकों के मध्य कॉल मुद्रा के लेन-देन को अंतर बैंक काल मुद्रा बाजार कहते हैं। अंतर बैंक कॉल मुद्रा बाजार में प्रचलित दरें
: वर्ष 1986 में प्रारम्भ किए गए इस संघटक का उपयोग सरकार करती है। ट्रेजरी बिल द्वारा केन्द्र सरकार अल्पकालिक ऋण प्राप्त करती हैं। वर्तमान में 91, 182, 364 दिवसीय ट्रेजरी बिल प्रचलित है।
* ट्रेजरी बिल्स रिजर्व बैंक द्वारा सरकार के लिए निर्गमित की जाने वाली अत्यल्प अवधि की प्रतिभूतियों होती हैं, जिसके माध्यम से सरकार ऋण लेती है। यह दो प्रकार की होती है प्रथम नीलामी ट्रेजरी बिल्स (जो रिजर्व
बैंक द्वारा 91, 182 एवं 364 दिनों के लिए निर्गमित की जाती है) तथा दूसरी-तदर्थ (एडहॉक) ट्रेजरी बिल्स (यह अत्यन्त अस्थाई प्रतिभूति है, जो रिजर्व बैंक के नाम से ही निर्गमित होती थी। 1997-98 में इसे बंद कर दिया गया)।
वर्ष 1990 में संगठित इस संघटक का प्रयोग वित संस्थानों, गैर बैंकिंग वित्त कंपनियों, मर्चेन्ट बैकों, सहकारी बैंकों एवं म्यूचुअल फंड कंपनियों द्वारा किया जाता है।
: वर्ष 1989 में प्रारम्भ इस संघटक का उपयोग बैंकों द्वारा अपनी तात्कालिक धन की कमी को पूरा करने में किया जाता है।
: वर्ष 1990 में संगठित इस संघटक का उपयोग गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों एवं अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों के द्वारा 'प्रोमिसरी नोट्स' (Promissory Notes) के रूप में किया जाता है।
इसका प्रचलित नाम सिर्फ म्यूचुअल फंड है। इसके माध्यम से शेयर एवं प्रतिभूति बाजार के संबंध में विशेष जानकारी न रखने के बावजूद भी आम आदमी को इस क्षेत्र में निवेश करके लाभ कमाने का अवसर प्राप्त होता है। इसकी स्थापना 1992 में हुई थी।
अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति तथा उसको तरलता की ताप के लिए इसके द्वारा मुद्रा के चार संघटकों (Components) को M1. M2. M3, तथा M4, नाम दिया गया था, जिनकी आंतरिक बनावट (Internal composition) निम्न प्रकार है
Components of Money
• M1 = जनता के पास करेंसी नोट एवं सिक्के + बैंकों की मांग जमा (बचत खाता + चालू खाता) + RBI के पास अन्य जमाएँ
अर्थात् M4. द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था में उपलब्ध सभी प्रकृति की तरलता (liquidity) वाली मुद्राओं की माप हो जाती है।
जैसे-जैसे हम M1, से M4 की तरफ बढ़ते हैं मुद्रा की तरलता (liquidity) घटती है। अर्थात् इनमें सर्वाधिक तरलता(liquidity) M1 की है तथा न्यूनतम तरलता M4 की है।
* प्रतिभूति बाजार की भूमिका तरलता (liquidity) का तात्पर्य है उनकी लघु एवं दीर्घ अवधि की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षमता। जहाँ किसी मुद्रा की उच्च तरलता (liquidity) उसे प्रतिभूति बाजार की भूमिका लघु अवधि की धन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बेहतर बनाता है वहीं उनके द्वारा धन की दीर्घावधिक आवश्यकता की पूर्ति नहीं की जा सकती यह भी पता चलता है।
* M1 जनता को उपलब्ध मुद्रा की मात्रा है। इसे संकीर्ण मुद्रा (Narrow Money) भी कहते हैं, क्योंकि इसकी तरलता सबसे अधिक है और निवेश में इसकी भूमिका नहीं के बराबर है।
* M3 को व्यापक मुद्रा या सुलभ मुद्रा (Broad Money) कहा जाता है। साख नियंत्रण प्रतिभूति बाजार की भूमिका में यह उपयोगी है, क्योंकि इसका संबंध बैंकों की कुल जमाराशियों से है।
* भारतीय अर्थव्यवस्था की दीर्घावधिक निवेश आवश्यकताएँ (जिस पर आर्थिक वृद्धि टिकी होती है) वास्तव में M3 से पूरी होती हैं।
सस्ती मुद्रा नीति से अभिप्राय ऐसी मौद्रिक नीति से है। जिसके अन्तर्गत उद्योगों, व्यवसायों व उपभोक्ताओं को कम ब्याज दर व आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध होते हैं। उद्योगों व व्यापार को प्रोत्साहन देने हेतु प्राय: इस नीति का उपयोग किया जाता है। किन्तु सस्ती मुद्रा नीति से मुद्रा स्फीति में वृद्धि होती है।
महँगी मुद्रा नीति का उपयोग साख संकुचन के लिए किया जाता है। इससे मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है। इस नीति के अन्तर्गत ब्याज दर में वृद्धि कर दी जाती है।
सेबी (SEBI) क्या है
भारतीय पूंजी बाजार दुनिया के सबसे बड़े पूंजी बाजारों में से एक है | भारत के मुख्य स्टॉक एक्सचेंज , सेंसेक्स की वैश्विक बाजारों में एक प्रमुख भूमिका है | इस पूंजी बाजार को नियंत्रित और निगरानी के लिए सरकार द्वारा भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अर्थात (SEBI) का गठन किया गया |
हालाँकि शेयर मार्केट में रूचि रखनें वाले लोगो को सेबी के बारें में जानकारी होती है, परन्तु वर्तमान समय में आयोजित होनें वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में भी भारतीय प्रतिभूति और प्रतिभूति बाजार की भूमिका विनिमय बोर्ड अर्थात सेबी से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते है | यदि आप भी सेबी के बारें में विस्तृत जानकारी प्राप्त करना चाहते है, तो सेबी (SEBI) क्या है, फुल फॉर्म, सेबी के कार्य व अधिकार, गठन और मुख्यालय के बारें में आपको यहाँ पूरी जानकारी दे रहे है |
सेबी का फुल फॉर्म (SEBI Full Form)
Table of Contents
सेबी (SEBI) का फुल फार्म “सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया (Securities and Exchange Board of India)” है | हिंदी में इसे ‘भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड’ कहा जाता है | सेबी की स्थापना का मुख्य उद्देश्य शेयर मार्केट में निवेश करनें वाले लोगो को धोखाधड़ी तथा स्कैम आदि से सुरक्षित रखना है |
सेबी का क्या मतलब है ?
सेबी एक सांविधिक निकाय और एक बाजार नियामक है, जो भारत में प्रतिभूति बाजार को नियंत्रित करता है। सेबी का मूल कार्य प्रतिभूतियों में निवेशकों के हितों की रक्षा करना और प्रतिभूति बाजार को बढ़ावा देना और विनियमित करना है | सेबी का संचालन बोर्ड के सदस्यों द्वारा किया जाता है |
बोर्ड में एक अध्यक्ष और कई अन्य अंशकालिक सदस्य होते हैं। जिसमें अध्यक्ष का नामांकन सरकार द्वारा किया जाता है | अन्य में वित्त मंत्रालय के दो सदस्य, भारतीय रिजर्व बैंक के एक सदस्य और पांच अन्य सदस्य भी केंद्र द्वारा नामित हैं | सेबी का मुख्यालय मुंबई में स्थित है और क्षेत्रीय कार्यालय अहमदाबाद, कोलकाता, चेन्नई और दिल्ली में स्थित हैं |
सेबी की स्थापना का उद्देश्य (Objective Of Setting Up SEBI)
1980 के दशक के दौरान, जनता की बढ़ती भागीदारी के कारण पूंजी बाजार में जबरदस्त वृद्धि हुई | इसके कारण कीमतों में हेराफेरी, नए मुद्दों पर अनधिकृत प्रीमियम, स्टॉक एक्सचेंजों के नियमों और नियमों का उल्लंघन और लिस्टिंग आवश्यकताओं, दलालों, व्यापारी बैंकरों, कंपनियों, निवेश सलाहकारों और अन्य लोगों द्वारा शेयरों की डिलीवरी में देरी आदि अनेक प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होनें लगी |
इसके परिणामस्वरूप लोगो का विश्वास शेयर मार्केट से खोने लगा और निवेशकों द्वारा इसकी शिकायत की गयी परन्तु सरकार और स्टॉक एक्सचेंज निवेशकों की इन शिकायतों का निवारण करने में सक्षम नहीं थे। ऐसे में सरकार को एक प्राधिकरण स्थापित करने की आवश्यकता महसूस हुई, जिसके परिणामस्वरूप सरकार द्वारा सेबी की स्थापना की गयी |
सेबी के कार्य व अधिकार (Functions & Powers Of SEBI)
सेबी के कार्यों को व्यापक रूप से तीन भागों में विभाजित किया गया है, जो इस प्रकार है-
1. सुरक्षात्मक कार्य (Protective work)
- सुरक्षात्मक कार्यों के अंतर्गत सेबी के कार्य इस प्रकार है-
- मूल्य निर्धारण की जाँच करना |
- इनसाइडर ट्रेडिंग पर प्रतिबन्ध लगाना |
- धोखाधड़ी और अनुचित व्यापार व्यवहारों को प्रतिबंधित करना |
- निवेशकों में जागरूकता उत्पन्न करना |
2. विकासात्मक कार्य (Developmental Work)
विकासात्मक श्रेणी के अंतर्गत सेबी के कार्य इस प्रकार है-
- बिचौलियों या ब्रोकरो को प्रशिक्षण देना |
- निष्पक्ष व्यापार को बढ़ावा देना |
- निष्पक्ष व्यापार को बढ़ावा देना और दुर्भावनाओं को कम करना |
- रिसर्च कार्य को अंजाम देना |
- स्व-विनियमन संगठनों को प्रोत्साहित करना |
- ब्रोकर के माध्यम से सीधे एएमसी से म्यूचुअल फंड खरीदें-बेचें |
3. विनियामक कार्य (Regulatory Functions)
स्टॉक एक्सचेंज की गतिविधियों को विनियमित करने के लिए कार्य इस प्रकार है-
- सेबी ने नियमों और विनियमों और व्यापारी बैंकरों, दलालों, अंडरराइटर जैसे मध्यस्थों को विनियमित करने के लिए एक आचार संहिता तैयार की है |
- सेबी स्टॉक ब्रोकर, सब-ब्रोकर, शेयर ट्रांसफर एजेंट, ट्रस्टी, मर्चेंट बैंकर और उन सभी के कार्यों को पंजीकृत करता है, जो किसी भी माध्यम से स्टॉक एक्सचेंज से जुड़े हुए हैं |
- कंपनियों के अधिग्रहण को नियंत्रित करनें का कार्य सेबी द्वारा किया जाता है |
- एक्सचेंजों की पूछताछ और ऑडिट आयोजित करना |
सेबी की शक्तियां (Powers Of SEBI)
सेबी के पास नियामक संस्था के रूप में तीन प्रमुख शक्तियां हैं, जो इस प्रकार हैं-
1. अर्ध-न्यायिक शक्तियां (Quasi-Judicial Powers)
प्रतिभूति बाजार (Securities Market) से संबंधित धोखाधड़ी और अनैतिक व्यवहार के मामलों में सेबी को निर्णय पारित करने की शक्ति या अधिकार है। यह शक्ति प्रतिभूति बाजार में पारदर्शिता, जवाबदेही और निष्पक्षता बनाए रखने की सुविधा देती है।
2. अर्ध-कार्यकारी शक्तियां (Quasi-Executive Powers) प्रतिभूति बाजार की भूमिका
सेबी के पास नियमों का उल्लंघन करनें पर उसके विरुद्ध साक्ष्य का प्रमाण एकत्र करने के लिए बुक ऑफ अकाउंट्स और अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेजों की जांच करने की शक्ति है। यदि यह नियमों का उल्लंघन करता है, तो नियामक संस्था के पास नियम लागू करने, निर्णय पारित करने और उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की शक्ति प्राप्त है |
3.अर्ध-विधायी शक्तियां (Quasi-Legislative Powers)
निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए सेबी को उपयुक्त नियम और कानून बनाने की शक्ति प्रदान की गयी है | इसके कुछ रेगुलेशंस में लिस्टेड लायबिलिटी, बिज़नेस रूल्स और डिस्क्लोजर रिक्वायरमेंट्स शामिल हैं और इनको दुर्भावना से बचाने के लिए तैयार किया गया है। इन शक्तियों के बावजूद सेबी को सिक्योरिटीज ट्रिब्यूनल ऑफ़ इंडिया (भारतीय प्रतिभूति न्यायाधिकरण) और भारत के सर्वोच्च न्यायालय से गुजरना पड़ता है |
सेबी की संरचना (Structure of SEBI)
सेबी के बोर्ड में नौ सदस्य शामिल होते है, जो इस प्रकार है-
- बोर्ड का एक अध्यक्ष – भारत सरकार के केंद्र द्वारा नियुक्त किया जाता है |
- एक बोर्ड सदस्य – केंद्रीय बैंक अर्थात आरबीआई द्वारा नियुक्त किया जाता है |
- दो बोर्ड के सदस्य – केंद्रीय वित्त मंत्रालय से नियुक्त किये जाते है |
- पांच बोर्ड सदस्य – भारत की केंद्र सरकार द्वारा चुने गए |
सेबी के अध्यक्ष, बोर्ड की देखरेख के अलावा, संचार, सतर्कता और आंतरिक निरीक्षण विभाग पर भी नज़र रखते हैं | संगठनात्मक संरचना में चार पूर्णकालिक सदस्य हैं | पूरे समय के सदस्यों को कई विभागों आवंटित किये जाते है, जिनकी उन्हें देखरेख करनी होती है | प्रत्येक विभाग व्यक्तिगत रूप से एक कार्यकारी निदेशक के नेतृत्व में होता है | कार्यकारी निदेशक विशिष्ट पूर्णकालिक सदस्यों को रिपोर्ट करते हैं | सेबी प्रतिभूति बाजार की भूमिका की संगठनात्मक संरचना में 25 से अधिक विभाग शामिल हैं |
प्रतिभूतियों की सुरक्षा के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग में भारत सबसे अच्छाः सेबी प्रमुख
बेंगलुरू, 28 अक्टूबर (भाषा) भारतीय प्रतिभूति और विनियम बोर्ड (सेबी) की चेयरमैन माधवी पुरी बुच ने शुक्रवार को कहा कि ग्राहकों की प्रतिभूतियों की सुरक्षा के लिए तकनीक का उपयोग करने के मामले में भारत से बेहतर कोई देश नहीं है।
उन्होंने कहा कि भारत में ग्राहकों की प्रतिभूतियों की सुरक्षा के लिए प्रौद्योगिकी का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। उन्होंने कहा कि विदेशी निवेशक अक्सर उन्हें बताते हैं कि वह भाग्यशाली हैं कि इस देश में डेटा और प्रौद्योगिकी का चलन है, जो पूंजी बाजार नियामक की भूमिका को प्रभावी बना रही है।
बुच ने भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम),बेंगलुरु के 49वें स्थापना प्रतिभूति बाजार की भूमिका दिवस समारोह में ‘पूंजी बाजार में डेटा और प्रौद्योगिकी’ पर अपने व्याख्यान में यह बात कही।
उन्होंने कहा, ‘‘पूरे बाजार में प्रौद्योगिकी में भारी बदलाव आया है। यह दुनिया में कहीं भी कभी नहीं किया गया है लेकिन हमने भारत में ऐसा किया है। आज ग्राहकों की प्रतिभूतियों की सुरक्षा के लिहाज से दुनिया में भारत से बेहतर कोई नहीं है।’’
हालांकि, उन्होंने कहा कि सेबी को भी कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। विनियमन ने प्रौद्योगिकी के साथ तालमेल नहीं रखा है लेकिन वह अगले कुछ महीनों में इस समस्या को ठीक करने की कोशिश की जा रही है।
सेबी प्रमुख ने कहा कि बोर्ड अब ‘सुपरटेक’ या पर्यवेक्षी प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहा है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हर कोई नियमों का पालन करें।
उन्होंने बताया कि साइबर हमलों के जोखिम को कम करने के लिए नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) और बीएसई में एक प्रणाली स्थापित की जा रही है। प्रतिभूति बाजार की भूमिका नयी प्रणाली के अगले साल मार्च में शुरू होने की उम्मीद है।
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.
प्रतिभूति बाजार में निवेशकों को जोड़ने में ई-केवाईसी बना गेम चेंजर: गर्ग
नई दिल्लीः प्रतिभूति बाजार नियामक सेबी के कार्यकारी निदेशक जी.पी.गर्ग ने आज कहा कि प्रतिभूति बाजार में अधिक निवेशकों को जोड़ने में ई-केवाईसी गेम चेंजर साबित हो रहा है। गर्ग ने गुरुवार को ग्लोबल फिनटेक फेस्ट में अपने संबोधन में कहा कि ई-केवाईसी ने अधिक निवेशकों को प्रतिभूति बाजार में जोड़ने में एक जबरदस्त भूमिका निभाई है क्योंकि इस व्यवस्था के तहत कोई भी 15 मिनट से भी कम समय में डीमैट, ट्रेडिंग खाता खोल सकता है और इसका हिस्सा बन सकता है।
ई-केवाईसी ने न:न केवल व्यापार करने में आसानी प्रदान की है बल्कि वास्तव में इसने निवेश करने को भी आसान बनाया है। उन्होंने विभिन्न तकनीकों को अपनाने के लाभ का उल्लेख करते हुए कहा कि सेबी शायद प्रौद्योगिकी के अच्छे उपयोग के साथ ‘रेगटेक' का पालन करने वाला पहला नियामक है, जिससे उसे निर्णय लेने में काफी मदद मिली है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि कैसे डेटा एनालिटिक्स ने इनसाइडर ट्रेडिंग, मनी लॉन्ड्रिंग और अलर्ट जनरेशन से संबंधित मामलों को रोकने में मदद की है। उन्होंने कहा, ‘‘एक नियामक के रूप में कुशल होने के लिए एक मजबूत निगरानी प्रणाली का होना महत्वपूर्ण होता है। प्रौद्योगिकी के विकास ने लागत घटाने के साथ ही डेटा क्षमता और अधिक कंप्यूटिंग शक्ति को बढ़ावा दिया है।
गर्ग ने इनोवेशन सैंडबॉक्स का हिस्सा बनने के लिए देश के नवोन्मेषकों का स्वागत किया और कहा कि इसके अभिन्न अंग के रूप में कोई भी एक्सचेंज के पास उपलब्ध डेटा तक पहुंचने के लिए सेबी में आवेदन कर सकता है। समिति के आवेदन को स्वीकृत करने लेने के बाद डेटा उपलब्ध करा दिया जाता है, जो इसके नैतिक रूप से इस्तेमाल को सुनिश्चित करता है।
नियामक सैंडबॉक्स का चयन करने वाली कंपनियों को मौजूदा नियमों में बहुत अधिक छूट प्रदान की जाती है। उन्होंने स्कोर्स के माध्यम से शिकायतें दर्ज करने की प्रक्रिया के आसान होने का उल्लेख करते हुए कहा कि एक्सचेंज सालाना लगभग 50000 शिकायतें दर्ज करता है। इनमें से लगभग 90 प्रतिशत शिकायतें ऑनलाइन दर्ज की जाती हैं।
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