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एक दलाल का वेतन क्या है

एक दलाल का वेतन क्या है

रामलुभाया (भाग 1) : कहानी

रामलुभाया (भाग 1) : कहानी
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रामलुभाया की सरकारी नौकरी( कहानी)
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राम लुभाया का बचपन से ही एकमात्र लक्ष्य सरकारी नौकरी में जाना था। पता नहीं कहां से उसे यह ज्ञात हो गया था कि सरकारी नौकरी में वेतन ज्यादा होता है और काम कम करना पड़ता है। इसके अलावा छुट्टियां भी ढेरों मिलती हैं। राम लुभाया से मेरा परिचय था।
मेरी राय उससे कुछ हटकर थी। मेरा मानना था कि सरकारी नौकरी में ज्यादा जिम्मेदारी होती है और सरकारी नौकरी में अगर कोई भूल चूक हो जाए या हिसाब किताब की कोई गड़बड़ हो जाए तब उसमें माफी की कोई गुंजाइश नहीं रहती।
रामलुभाया ज्यादा पढ़ने लिखने में होशियार नहीं था। हाई स्कूल में हिंदी मीडियम से उसकी सेकंड डिवीजन आई थी और इंटर में भी सेकंड डिविजन । मेरा कहना यह था कि इंजीनियरिंग मेडिकल या अन्य कंपटीशन में बैठो ।या फिर किसी बड़ी कंपनी या किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम कर लो। लेकिन राम लुभाया का अपना तर्क था । उसका कहना था कि प्राइवेट कंपनियों में बड़ा शोषण चलता है। यह लोग सुबह 9:00 बजे से रात के 9:00 बजे तक अपने कर्मचारी को घेर लेते हैं और उसके पास केवल शनिवार और रविवार छुट्टी के दिन रह जाते हैं।
बाद में जब राम लुभाया ने इंटर द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण किया और बीए में आया तब यह निश्चित हो चुका था कि यह व्यक्ति पढ़ाई-लिखाई के हिसाब से कुछ ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाएगा। बी ए पास करने के बाद राम लुभाया ने बहुत सी सरकारी नौकरियों में आवेदन देना शुरू कर दिया । कई लिखित परीक्षाओं में बैठा। इंटरव्यू की नौबत आने से पहले ही उसका नाम नहीं आया। लिखित परीक्षा को पास करना भी उसके लिए कठिन था ।
एक दिन जब उसने बी ए पास कर लिया तो मेरे पास आया और कहने लगा” भाई साहब एक राय दीजिए! एक दलाल मिला है। कह रहा है सरकारी नौकरी लगवा देगा। चार लाख रुपए मांग रहा है।”
मैंने कहा “इस चक्कर में बिल्कुल मत पड़ना ।यह रुपए भी खा जाएंगे और काम भी नहीं करेंगे ।तुम बर्बाद हो जाओगे ।”
लेकिन राम लुभाया पर तो सरकारी नौकरी का जादू सिर चढ़कर बोल रहा था । बोला “नहीं भाई साहब । आदमी बिल्कुल पक्का है ।भरोसे के लायक है । कह रहा है पैसे पहले दो ,क्योंकि ऊपर तक पहुंचाने हैं । काम तुम्हारा 100% हो जाएगा ”
मैंने कहा “मेरी राय नहीं है। सरकारी नौकरी के नाम पर बहुत बड़े फ्रॉड चारों तरफ चल रहे हैं । तुम इनसे बचकर रहो , तो अच्छा है । जो नौकरी सही रास्ते पर चलकर मिल जाए, वही अच्छी कहलाती है ।”
मेरी बात का राम लुभाया पर कोई असर नहीं था ।वह मेरी राय पूछने तो आया था लेकिन मेरा उपदेश सुनने में उसे कोई दिलचस्पी नहीं थी ।यह कहकर चला गया कि “भाई साहब ! लेना तो सरकारी नौकरी ही है ,और बिना पैसा दिए मिलने वाली है नहीं ।”
फिर बात आई गई हो गई । करीब करीब साल भर के बाद राम लुभाया मेरे पास आया मैंने कहा” क्या हुआ ? ”
बोला “साहब! आप भी सही कह रहे थे । मैंने दो लाख में बात करी थी । दो लाख शुरू में दिए , दो लाख काम पूरा होने के बाद देने थे । काम नहीं हुआ और वह मेरे दो लाख रुपए मार कर बैठ गया”
अब मैंने कहा कि “क्या सोचा है ? किसी प्राइवेट में अप्लाई करो ।अच्छी जॉब मिल सकती है ।मेहनत से करोगे तो तरक्की करते रहोगे”
राम लुभाया ने कहा “साहब! चपरासी की नौकरी की बात चल रही है । आठवां पास होना चाहिए और मैं तो बी ए कर चुका एक दलाल का वेतन क्या है हूं ”
मैंने आश्चर्य से मुंह खोलकर उससे कहा “चपरासी की नौकरी तुम करोगे ?”
बोला “साहब ! क्या करें । जो भी मिल जाए ।अच्छी ही है ।प्राइवेट से तो अच्छी रहेगी । ज्यादा काम करना नहीं पड़ेगा और वेतन भरपूर है। छुट्टियां ढेरों मिलेंगी”
मैंने सिर पकड़ लिया और बुदबुदाया “राम लुभाया ! अभी भी तुम्हारे सर पर सरकारी नौकरी का भूत सवार है। तुम देश को बर्बाद किए बगैर नहीं छोड़ोगे।”
राम लुभाया ने मेरी बात सुन ली और बोला “साहब !आप कब तक सरकारी नौकरी में जाने से किसी को रोकेंगे । मैं नहीं जाऊंगा, कोई दूसरा जाएगा ,तीसरा जाएगा ।मान एक दलाल का वेतन क्या है लीजिए दलाल के माध्यम से ना भी गया तो भी जैसे सब लोग काम कर रहे हैं , मैं भी करूंगा ।”
मैंने कहा “राम लुभाया ! मैं भी एक सरकारी कर्मचारी हूं ।मेरे तमाम सगे संबंधी सरकारी नौकरी में है ।मैं सैकड़ों तो नहीं लेकिन कम से कम 40 पचास लोगों को जानता हूं और व्यक्तिगत रूप से मेरा परिचय है कि वे लोग पूरी ईमानदारी और कर्मठता के साथ सरकारी नौकरी में जिम्मेदारी के साथ काम कर रहे हैं।”
राम लुभाया ने बहुत शांत स्वर में इस बार कहा “मेरा सरकारी नौकरी के बारे में अपना दृष्टिकोण है, जो आपसे अलग है। लेकिन मैं आपको दिखा दूंगा कि सही मैं ही हूं।”- कहकर राम लुभाया चला गया।
इस घटना के करीब 4 महीने के बाद मैंने एक अखबार में खबर पढ़ी शीर्षक था- “चपरासी की कतार में ग्रेजुएट”….खबर में संयोगवश राम लुभाया की फोटो भी छपी थी। मैंने झटपट पूरी खबर पढ़ी और तब जाकर पता चला यह एक सरकारी विभाग में चपरासी के 1 पद के लिए विज्ञापन निकाला गया था जिस पर लगभग 35 ऐसे आवेदनकर्ता थे जो ग्रेजुएट थे । राम लुभाया भी उनमें से एक था। जब इंटरव्यू शुरू हुआ तब थोड़ी देर में ही भगदड़ मच गई और नारेबाजी चालू होने लगी । अन्य आवेदन कर्ताओं का आरोप था कि राम लुभाया ने नियुक्तिकर्ताओं के साथ सेटिंग कर रखी है और उसका नाम पहले से तय है । अखबार में कहा गया था कि आरोप है कि भ्रष्टाचार में विभाग के उच्च अधिकारी शामिल हैं और रिश्वत का सारा पैसा ऊपर से नीचे तक सबको बँटना था। जब यह शोर ज्यादा मचा तो सबकी चेतना जागी और तब जाकर बहुत ऊंचे स्तर पर अधिकारियों ने हस्तक्षेप किया और नियुक्ति प्रक्रिया को कैंसिल करवाया ।रामलुभाया का रोते हुए फोटो छपा था और उसमें वह कह रहा था कि मेरा सारा पैसा मारा जाएगा । फिर उसे कुछ एहसास हुआ होगा कि मैंने कुछ गलत कह दिया। तब कहीं कहा कि मुझे कुछ नहीं मालूम, मैं बेकसूर हूं ।…इसी प्रकार की अखबार में खबर थी, जिसको पढ़ कर मुझे पक्का विश्वास हो गया कि इस बार भी राम लुभाया दलालों के चक्कर में पड़ चुका है और पूरी तरह बर्बाद हो गया।
मुझे राम लुभाया से गहरी सहानुभूति हो रही थी। वह बेचारा सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार में फँस कर तथा सरकारी नौकरी के आकर्षण में जाकर चपरासी तक बनने के लिए तैयार था ,जबकि वह एक ग्रेजुएट था और उसने वास्तव में पढ़ाई की थी । यह जरूर है कि राम लुभाया कोई प्रथम श्रेणी का विद्यार्थी नहीं था और उसने परीक्षा में बहुत ऊंचे कीर्तिमान स्थापित नहीं किए थे लेकिन फिर भी वह साफ-सुथरी परीक्षा प्रक्रिया के द्वारा ग्रैजुएट पास करने के स्तर तक पहुंचा था और इससे बड़ा दुर्भाग्य देश का दूसरा नहीं हो सकता कि एक व्यक्ति… और एक नहीं बल्कि 35 ग्रेजुएट व्यक्ति… चपरासी के 1 पद के लिए मारामारी में लगे हुए थे। मैं सोचने लगा कि सरकारी नौकरियां जो निरंतर सिकुड़ रही हैं और देश की जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पा रही हैं , तो फिर अब इसका विकल्प क्या होना चाहिए ? कुछ तो सोचना पड़ेगा !
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लेखक: रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर उत्तर प्रदेश// मोबाइल 99 97 61 545 1

बिहार शिक्षक बहाली 2019,नियोजित शिक्षकों के समान काम के बदले समान वेतन ने किया लाखों अभ्यर्थियों को बेरोजगार।

Bihar Teacher Bahali 2019 :- बिहार शिक्षक बहाली 2019,नियोजित शिक्षकों के समान काम के बदले समान वेतन ने किया एक दलाल का वेतन क्या है लाखों अभ्यर्थियों को बेरोजगार।

बिहार के 3 लाख 75 हजार नियोजीत शिक्षकों के लिए खुला पत्र जारी किया है बिहार टीईटी पास सीटीईटी पास अभ्यर्थियों ने अब नियोजित शिक्षकों के प्रति एक खुला पत्र जारी किया है और उनसे जवाब माँगा है।

नियोजित शिक्षक जब यह कहते हैं कि बिहार के पास बेरोजगार युवा शिक्षक नियोजन का विरोध करें तो वह किस आधार पर कहते हैं. जब वे स्वयं नियोजित होने से नहीं चूके तो बिहार टीईटी व सीटेट पास अभ्यर्थियों को मना क्यों कर रहे हैं. और उन्होंने बिहार में शिक्षकों की बहाली निकलवाने के लिये क्या प्रयास किया. कुछ भी नहीं,बल्कि समान काम समान वेतन का मामला जब सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन था तो वो लोग संपर्क संपर्क करने पर कहा करते थे कि बहाली भूल जाइए क्योंकि अभी 3 से 4 साल तक बहाली नहीं होगी। जब अब बिहार में शिक्षकों की बहाली की उम्मीद जगी है,तो इनका विरोध करने की सलाह देकर हमें हमेशा के लिए बेरोजगारी की श्रेणी में ही रखना चाहते हैं.

जब बाली का विरोध करते हैं या करने को आते हैं तो भूल जाते हैं उन अभ्यर्थियों को जिन्होंने 2012 से उनके साथ संघर्ष किया पर आज भी बेरोजगार है। उनकी प्रमाण पत्र की वैधता समाप्त होने को है ऐसे में कोई इतना निष्ठुर कैसे हो सकता है।

बिहार में नियोजित शिक्षकों को उचित वेतन ना मिलने का सबसे बड़ा कारण है फर्जी शिक्षकों की बहाली एवं उनका काफी संख्या में होना भी एक प्रमुख कारण है। रोज समाचार पत्रों में कहीं ना कहीं फर्जी शिक्षकों को लेकर खबर प्रकाशित होती रहती है पर उन्हें बाहर करने में किसी संघ या नेता ने कोई प्रयास नहीं किया,बल्कि उन्हें सिस्टम में बनाए रखने के लिए दलाल का काम कर रहे हैं। क्या इन फर्जी शिक्षकों के कारण योग्य शिक्षकों की योग्यता पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगता है।

अंत में यही कहना चाहते हैं कि सभी मायने में आप बिहार के हितेषी है तो बिहार टीईटी व सीटीईटी पास अभ्यर्थियों को बहाली के बारे में आप सोचे ताकि टीईटी पास अभ्यर्थियों की बहाली शीघ्र हो सके और फर्जी शिक्षकों को बाहर करवा कर अपने सम्मान पर होनेवाले आघात को बचाए। रिंकु मिश्रा सदस्य बिहार की शिक्षा बिहार टीईटी सीटीईटी शिक्षक बहाली मोर्चा।

नियोजित शिक्षकों के समान काम समान वेतन मामले पर 10 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया और बिहार के 3 लाख 75 हजार नियोजित शिक्षकों को एक बड़ा झटका दिया। चुकी पटना हाईकोर्ट ने फैसला नियोजित शिक्षकों को समान काम समान वेतन देने का सुनाया था लेकिन बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट गयी और सुप्रीम कोर्ट ने 3 अक्टूबर 2019 को इस मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया था लेकिन जब 10 मई 2019 को फैसला आया तो सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के फैसला को ही पलट दिया ऐसे में बिहार के 3 लाख 75 हजार नियोजित शिक्षकों को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा झटका दिया । अब नियोजित शिक्षक आंदोलन की तैयारी कर रहे है।

नेता-अमीर-मालिक-दलाल सबके भीतर एक भिखारी रहता है !


THOUGHTS_1 H x

लाेनावला रेलवे स्टेशन पर बाहर टिकट घर का परिसर.. बात कुछ पुरानी है. मगर एक दलाल का वेतन क्या है जरूरी है.. बाहर बारिश हाे रही थी.. यात्रियाें के अलावा भी कई लाेग थे.. उनमें से चारपांच बड़े भिखारी थे.. कुछ बच्चे भी थे. तभी एक बुड्ढी के बाल वह जाे श्नकर से बनाया जाता है. वह बेचने वाला आया. उसका सारा माल करीब-करीब वैसा ही था. समय था करीब साढ़े छह.. सात बजे शाम का अंधेरा हाे रहा था. रेलवे स्टेशन के उस टिकट घर में ट्यूबलाइट्स जले हाेने से अच्छी राेशनी थी.. वे भिखारी शायद दिन भर भीख मांगते व शाम काे वहां एकत्र हाेते.. ऐसा बाताें से लग रहा था.. दिन भर कहां-कहां भीख मांगी.. क्या -्नया मिला.. लाेगाें का व्यवहार कैसा रहा? यह सब वे जाे आपस में बता रहे थे, उससे लग रहा था, कि यदि इंसान की असलियत जानना हाे ताे भिखारियाें से उनके व्यवहार के बारे में एक दलाल का वेतन क्या है जानना चाहिए.

तभी उस ‘बुड्ढी के बाल’ वाले ने माल निकाल निकालकर भिखारियाें व बच्चाें काे बांटना शुरू किया.. जिन्हें वह 10-10 रुपए में बेचता था, उन्हें मुफ्त में लुटा रहा था.. शायद 27 ऐसे बुड्ढी के बाल थे.. यानी बेचता ताे 270 रुपए बनते. उसने निसंकाेच लुटा दिया. बाेला - ‘ये बच्चे खा लें ताे समझाे मेरी कीमत मिल गई.’ उसकी इस ‘अमीरी’ काे देखकर आश्चर्य हुआ, पूछा - ‘कल कैसे धंधा कराेगे..क्या खाओगे? उसने कहा- ‘इतनी भी गरीबी नहीं है. रेलवे स्टेशन का यह शेड ही घर है किराया ताे देना नहीं है, दाे व्नत का खाना आराम से मिल जाता है. यही ताे मेरी फैमिली है, ये ही लाेग ही उसकी प्रापर्टी भी थे. यह समझना कठिन नहीं था.’ सचमुच, आप संकट काल में आजमा सकते हैं, काेई अमीर.. महलाें-ल्नजरी काराें वाला साथ नहीं देता.. ए्नसीडेंट स सड़क पर पड़े हाें, कहीं जेब कट गई हाे.. जेब में पैसे न हाें.. नया शहर हाे.. आपका साथ गरीब देंगे.. और यदि किसी अमीर ने दिया ताे समझ लें, वह पैसे काे नहीं इंसान काे मूल्य देता है. ऐसे कई उदाहरण हैं.

सिर्फ एक यहां पर चर्चा में! एक भिखारिन एक ऐसे ही बड़े शहर के रेलवे स्टेशन पर मर गई.. उसकी लाश उठाने जब कार्रवाई के तहत् पुलिस पहुंची ताे उसकी पाेटली में उसे कुछ रुपए मिले, साथ में एक मैसेज भी, उसमें लिखा था कि ‘जब काेई प्रसूति गृह बने ताे उसमें इस पैसे का इस्तेमाल किया जाए’ कितनी ‘अमीर’ भिखारिन थी वह. लेकिन सभी ऐसे नहीं हाेते. आंध्रप्रदेश के तिरुमला स्थित बालाजी मंदिर के सामने एक पुराने भिखारी श्रीनिवासन की मृत्यु हाे गई. मजा यह कि उसके घर का काेई वारिस न हाेने से पड़ाेसियाें की नजर जमी हुई थी, उस पर कब्जा करने. श्रीनिवासन से या उसकी लाश के अंतिम संस्कार आदि से काेई वास्ता न था, सूचना पाकर पुलिस पहुंची.. ताे हैरत में आ गई.. उसके पास नाेटाें से भरे दाे ब्नसे मिले, जिनमें 6,15050 रुपए थे. यानी भिखारी ताे लखपति था. लालची पड़ाेसी ताकते रह गए. वैसे ऐसा वह अकेला भिखारी नहीं है. ऐसे बहुत लखपति भिखारी आपकाे नेट पर मिल जाएंगे.

ये ताे प्रत्यक्ष भीख मांगते हैं, इसी पृथ्वी पर.. इसी मुल्क में वे अमीर जाे देश-समाज से एक दलाल का वेतन क्या है छीन-छीनकर शाेषण कर.. ठगी-जालसाजी से कानून ताेड़-झूठ बाेलकर कराेड़पति अरबपति-खरबपति बन गए हैं, वे सब भी ताे भिखारी हैं. ये अंबानी-अडानीक्या हैं? भिखारी ही ताे हैं. अंतर यह है कि यह ‘भिखारी मानसिकता’ वाले भिखारी हैं. इतना पैसा प्रापर्टी जमा है कि यह ‘कचरे’ में बदल गई है. खुद पता नहीं.. बेहिसाबी. हमारे नेताओं काे देखाे.. दल-पार्टी के नाम पर गैंग-गिराेह बना रखे हैं.. सब जनता से भीख एक दलाल का वेतन क्या है मांगते हैं. और खुद काे देव ‘समझते हैं. उनकी आत्मा ही बता देगी कि उनकी काैड़ी भर कीमत नहीं है. पता नहीं इस देश में राजनीति काे कब महत्व देना बंद किया जाएगा, सरकार और बाजार दाेनाें भिखारियाें से पटे पड़े हैं. सत्ता पक्ष हाे.. विपक्ष हाे काेई फर्क नहीं है. काेराेना काे लेकर सियासी गेम खेल रहे हैं. एक पुस्तक बहुत पहले देखी थी. शीर्षक याद एक दलाल का वेतन क्या है नहीं है, मगर उसके अंत में लिखा था.

‘मनुष्य के पतन की काेई सीमा नहीं है.’ अभी जाे ताउ-ते आया.. ताे उसने भी ऐसे भिखारी मानसिकता वालाें के नकाब उतार दिए.. नकाबक्या उतारे पूरा का पूरा वस्त्रहरण कर दिया. द्राैपदी के चीर ताे दुःशासन ने खींचे थे.. ये ताे खुद अपना ही चीरहरण करने वाले लाेग हैं. गैल GAIL गैस अथाॅरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड की कार्यशैली देखिए. ’ONGC’ या ऑइल एंड नैचुरल गैस कार्पाेरेशन लिमिटेड की चेतावनी के बाद भी कुछ ऐसे कांट्रै्नटर थे. जिन्हाेंने ‘एलर्ट’ जाे 14 मई काे ही जारी हाे गया था, की पर्वाह न करते हुए अपने कर्मियाें-मजदूराें काे माैत के मुंह में भेज दिया. मुंबई-हाई में बार्ज झ-305 व 553 के समुद्र में फंसने से जाे बचकर लाैटे, उनमें से सागर, विष्णु व सुभाष ताेमर जैसे लाेगाें ने टी.वी. मीडिया के सामने जाे बयान दिए, वे शर्मनाक ही नहीं, बल्कि खतरनाक भी हैं, इन्हाेंने बताया कि कांट्रै्नटर ने एलर्ट की उपेक्षा कर उन्हें समुद्र में भेज दिया.

जाे कैप्टन था, उसने कहा कि ‘तूफान बहुत दूर से जा रहा है, हमें खतरा नहीं है,’ मगर जब तूफान आ गया निकट ताे फिर मदद मांगी तब गेल प्रशासन ने कहा - ‘चेतावनी देने के बाद भी तुम लाेग गए ताे हम कैसे मदद कर सकते हैं.’ ONGC से गुहार की.

आखिर नेवी के जवानाें ने आकर जान पर खेलकर उन्हें बचाया. 261 से ज्यादा लाेगाें की जान खतरे में थी, उन्हाेंने उम्मीद भी छाेड़ दी थी. पुणे-पिंपरी चिंचवड़ मनपाओं में भी आप पाएंगे कि हजाराें कर्मी-मजदूर कांट्रै्नट पर हैं, कांट्रै्नटर काे सिर्फ ‘काम’ चाहिए. उसे आदमी से काेई मतलब नहीं, उनके वेतन-मानधन व अन्य देय रकम का बड़ा हिस्सा मिलता ही नहीं है. कई-कई महीने वेतन नहीं दिया जाता. आश्चर्य यह कि डाॅ्नटर-नर्सेस कांट्रै्नट पर हैं, उनके वेतन भत्ताें के नाम पर परेशान किया जाता है.

सच यह है कि इस मुल्क में प्राइवेट से्नटर का बड़ा हिस्सा अपने कर्मियाें-लेबर्स काे ‘बंधुआ’ मजदूर समझता है. राहुल बजाज का परिवार भी इस मामले उदार है.

ऐसे उद्याेगपति व मालिक वर्ग का हिस्सा है, मगर अधिकांश ऐसे लाेगाें की उदारता भी शाेषण के सिद्धांत पर ही जीता है. नहीं ताे इस देश में इतना धन, पैसा, दाैलत है कि काेई भूख, बीमारी या काेराेना एक दलाल का वेतन क्या है से मर जाए? मुश्किल है. इंसानियत के मामले में ताे यही सच है. ‘पर उपदेश कुशल बहु तेरे.’ दूसराें काे उपदेश देना सबसे आसान है. श्रीनिवासन ताे भिखारी की तरह जीया व मरा, लेकिन यह सच छाेड़ गया कि इस देश में सरकार हाे, बाजार हाे, नेता हाे, अमीर हाे, मालिक हाे दलाल हाे, ब्यूराेक्रेट्स हाें, कांट्रे्नटर्स हाें, सबके भीतर एक श्रीनिवासन रहता है.

सरकार गिराने के लिए ‘ईडी’ बनी है दलाल!

सामना संवाददाता / मुंबई
सातारा जिले में स्थित मायणी कॉलेज के मामले में ‘ईडी’ द्वारा जारी उत्पीड़न पर सत्र न्यायालय में मंगलवार को भी तीव्र नाराजगी जाहिर की गई। सरकार गिराने के लिए ‘ईडी’ एक दलाल बन गई है। इस केंद्रीय जांच एजेंसी के अधिकारियों की ओर से निष्पाप लोगों को धमकाया जा रहा है। लोगों को धमकाकर अपनी तरफ झुकाने का मामला इस समय ‘ईडी’ की तरफ से चल रहा है। बचाव पक्ष के वकीलों ने विशेष सत्र न्यायाधीश एम.जी. देशपांडे के समक्ष हुई सुनवाई के दौरान इस तरह के सनसनीखेज दावे किए।
मायणी मेडिकल कॉलेज में दाखिले से जुड़े कथित वित्तीय घोटाला मामले में १२ लोगों ने अग्रिम जमानत के लिए याचिका दायर की है। इसमें से नौ लोगों की तरफ से पिछली सुनवाई के दौरान मायनी मेडिकल कॉलेज में दाखिले से जुड़े कथित वित्तीय घोटाले में १२ लोगों ने अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया है। इनमें से नौ की ओर से पिछली सुनवाई के दौरान तर्क दिए गए थे। मंगलवार को शेष तीनों की ओर से एड. रवि जाधव ने अग्रिम जमानत की गुहार लगाई। इस दौरान उन्होंने ‘ईडी’ के मनमानी कारभार की पोल खोलकर रख दी। ईडी ने मायणी कॉलेज मामले में संस्था के पूर्व अध्यक्ष महादेव देशमुख और उनके भाई अप्पासाहेब देशमुख के परिजनों को निशाना बनाते हुए समन जारी किया। वेतन के पैसों में भी मनी लॉन्ड्रिंग का अंदेशा जताया गया। संबंधित रिश्तेदारों ने भी अपने बैंक खातों में पैसे की पारदर्शिता साबित करनेवाले सभी दस्तावेज प्रस्तुत किए हैं। ईडी ने कथित अपराध की जांच पूरी कर ली है और पूरक आरोप पत्र दायर किया है। उसके बाद भी ईडी की गिरफ्तारी का डर सता रहा है। खास बात यह है कि पिछले तीन महीने में न तो कोई गिरफ्तारी की और न ही कोई जवाब दिया।
सरासर उत्पीड़न और दबाव डालने के लिए ‘ईडी’ देशमुख बंधुओं के रिश्तेदारों की अग्रिम जमानत की याचिका का विरोध कर रही है। मेडिकल कॉलेज को निगलने की योजना है। जांच एजेंसी के पास यदि कथित मनी लॉन्ड्रिंग के सबूत हैं तो फिर कॉलेज अथवा अचल संपत्ति जब्त क्यों नहीं की? इस तरह का सवाल भी एड. जाधव ने सुनवाई के दौरान उपस्थित किया। न्यायालय ने इसे संज्ञान में लिया। शेष बहस १३ अक्टूबर को होनेवाली सुनवाई के दौरान होगी।

‘ईडी’ के कामकाज पर खड़ा किया सवाल
संविधान की धारा-२१ के तहत नागरिकों को कई अधिकार दिए गए हैं। उस धारा के प्रावधानों को धता बताकर ‘ईडी’ निर्दोष लोगों को प्रताड़ित क्यों कर रही है? मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (पीएमएलए) में भी अग्रिम जमानत का अधिकार है। फिर ईडी को अग्रिम जमानत याचिका का विरोध करने की जरूरत ही क्या है? ईडी केवल सरकार गिराने के लिए दलाल के तौर पर काम करेगी क्या? नागरिकों को इस केंद्रीय जांच एजेंसी की तरफ से निष्पक्ष कामकाज की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए क्या? जिस तरह से बैंक के रिकवरी एजेंट वसूली के लिए दरवाजे पर आकर गाली-गलौज करते हैं, धमकी देते हैं, उसी तरह ईडी के अधिकारी भी धमका रहे हैं। ईडी भी रिकवरी एजेंट बन गई है क्या?

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