इक्विटी निवेश

निवेश उत्पाद
बैंक ऑफ बड़ौदा पहली बार एवं अनुभवी निवेशकों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए म्यूचुअल फंड, पोर्टफोलियो प्रबंधन सेवाओं (पीएमएस), बांड, एनसीडी, वैकल्पिक निवेश उत्पादों आदि की विस्तृत श्रृंखला पेश करता है.
म्यूचुअल फंड निवेश
- म्युचुअल फंड दीर्घावधि में मुद्रास्फीति से निपटने एवं कर-बचत प्रतिफल (रिटर्न) प्रदान करते हैं .
- निवेशक अपने जोखिम / रिटर्न प्रोफाइल के अनुसार विभिन्न आस्ति वर्गों जैसे इक्विटी, ऋण या सोने में निवेश कर सकते हैं.
वैकल्पिक निवेश उत्पाद
- वैकल्पिक निवेश उत्पादों का उपयोग करके पेशेवर प्रबंधित और विविध प्रकार की निवेश नीतियों की सुविधा प्राप्त करें.
- वैकल्पिक निवेश उत्पाद में पोर्टफोलियो प्रबंधित सेवा, संरचित उत्पाद आदि शामिल हैं.
बड़ौदा ई-ट्रेड 3 इन 1 खाता
- बाधा रहित और सुरक्षित ट्रेडिंग अनुभव प्राप्त करने के लिए बैंक ऑफ़ बड़ौदा के साथ एक सिंक्रोनाइज़ बैंक, डीमैट और ट्रेडिंग खाता खोलें .
- डिजिटल खाता खोलने की प्रक्रिया 100% कागज रहित और बाधा-रहित मुक्त है.
डिमैट खाता
आसान स्टोरेज एवं लेनदेन की सुविधा के लिए प्रतिभूतियों को इलेक्ट्रॉनिक रूप में रखें.
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
म्यूचुअल फंड निवेशकों को यूनिट जारी करके और प्रस्ताव दस्तावेज में बताए गए उद्देश्यों के अनुसार प्रतिभूतियों में फंड का निवेश करके धन जमा करने का एक साधन है.
प्रतिभूतियों में निवेश उद्योगों और क्षेत्रों के व्यापक क्रॉस-सेक्शन में फैला हुआ है और इस प्रकार इसमें अनेक प्रकार की जोखिम है क्योंकि सभी स्टॉक एक ही तरह से और एक ही समय में सामान अनुपात में नहीं चल सकते हैं. म्यूचुअल फंड द्वारा निवेशकों को उनके द्वारा निवेश किए गए धन की मात्रा के अनुसार इकाइयाँ जारी किया जाता है. म्यूचुअल फंड के निवेशकों को यूनिटहोल्डर के रूप में जाना जाता है.
इसके अंतर्गत लाभ या हानि निवेशकों द्वारा उनके निवेश के अनुपात में शेयर की जाती है. म्यूचुअल फंड आम तौर पर कई योजनाएं लेकर आते हैं जो समय-समय पर विभिन्न निवेश उद्देश्यों के इक्विटी निवेश साथ शुरू की जाती हैं.
म्यूचुअल फंड की किसी विशेष योजना का कार्यनिष्पादन इसके नेट आस्ति मूल्य (एनएवी) द्वारा दर्शाया जाता है.
म्यूचुअल फंड निवेशकों से जुटाए गए रकम को प्रतिभूति बाजार में निवेश करते हैं. सरल शब्दों में, एनएवी योजना द्वारा धारित प्रतिभूतियों का बाजार मूल्य होता है. चूंकि प्रतिभूतियों का बाजार मूल्य प्रत्येक दिन बदलता है, इसलिए किसी योजना का एनएवी भी दैनिक आधार पर बदलता रहता है. प्रति इकाई एनएवी किसी विशेष तिथि पर योजना की कुल इकाइयों की संख्या से विभाजित करके इसकी प्रतिभूतियों का बाजार मूल्य होता है. उदाहरण के लिए, यदि म्यूचुअल फंड योजना की प्रतिभूतियों का बाजार मूल्य रू. 200 लाख है और म्यूचुअल फंड ने निवेशकों को 10 रुपये की 10 लाख इकाइयां जारी की हैं, तो फंड की प्रति यूनिट एनएवी 20 रुपये (यानी, 200) होगी. म्यूचुअल फंड द्वारा दैनिक आधार पर एनएवी का खुलासा करना आवश्यक होता है.
- परिपक्वता अवधि के अनुसार योजनाएं:
किसी म्यूचुअल फंड योजना को उसकी परिपक्वता अवधि के आधार पर ओपन-एंडेड योजना या क्लोज-एंडेड योजना क्र रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है.
ओपन-एंडेड फंड / योजना
एक ओपन-एंडेड फंड या योजना वह है जो निरंतर आधार पर सदस्यता और पुनर्खरीद के लिए उपलब्ध होता है. इन योजनाओं की कोई निश्चित परिपक्वता अवधि नहीं होती है. निवेशक आसानी से प्रति यूनिट नेट एसेट वैल्यू (एनएवी) पर यूनिट खरीद और बेच सकते हैं जिसे दैनिक आधार पर इक्विटी निवेश घोषित किया जाता है. ओपन-एंड योजनाओं की प्रमुख विशेषता तरलता(लिक्वीडीटी है
क्लोज-एंडेड फंड / योजना
क्लोज-एंडेड फंड या स्कीम के अंतर्गत एक निर्धारित परिपक्वता अवधि होती है, जैसे, 3-5 साल. योजना के शुभारंभ के समय एक निर्दिष्ट अवधि के दौरान ही फंड सदस्यता के लिए खुला रहता इक्विटी निवेश है. निवेशक नए फंड की पेशकश के समय इस योजना में निवेश कर सकते हैं और बाद में वे स्टॉक एक्सचेंजों पर योजना की इकाइयों की खरीद या बिक्री कर सकते हैं जहां इकाइयां सूचीबद्ध हैं. निवेशकों को एक एक्जिट मार्ग प्रदान करने के लिए, कुछ क्लोज-एंडेड फंड एनएवी से संबंधित कीमतों पर आवधिक पुनर्खरीद के माध्यम से यूनिट को म्यूचुअल फंड को फिर से बेचने का विकल्प देते हैं.
किसी योजना को उसके निवेश के उद्देश्य पर विचार करते हुए विकास योजना, आय योजना या संतुलित योजना के रूप में भी वर्गीकृत किया जा सकता है. इस तरह की योजनाएं ओपन-एंडेड या क्लोज-एंडेड कोई भी हो सकती हैं जैसा कि इससे पूर्व सूचित किया है. ऐसी योजनाओं को मुख्य रूप से निम्नानुसार वर्गीकृत किया जा सकता है:
विकास/इक्विटी उन्मुख योजना
ग्रोथ फंड का उद्देश्य मध्यम से लंबी अवधि में पूंजी वृद्धि प्रदान करना है. ऐसी योजनाएं आम तौर पर अपनी निधि का का एक बड़ा हिस्सा इक्विटी में निवेश करती हैं. ऐसे फंडों में तुलनात्मक रूप से उच्च जोखिम निहित होता है. ये योजनाएं निवेशकों को लाभांश विकल्प एवं विकास जैसे विभिन्न विकल्प प्रदान करती हैं और निवेशक अपनी पसंद के आधार पर किसी विकल्प का चयन कर सकते हैं. निवेशकों द्वारा अपने आवेदन पत्र में ऐसे विकल्प का उल्लेख करना चाहिए. म्यूचुअल फंड अपने निवेशकों को इसकी तारीख के बाद भी अपना विकल्प बदलने की अनुमति भी प्रदान करते हैं.. दीर्घावधि के दृष्टिकोण वाले निवेशकों के लिए ऐसी विकास योजनाएं अच्छी होती हैं, जो समय की अवधि में इसमें बढ़ोत्तरी चाहते हैं.
आय/ऋण उन्मुख योजना
आय फंड का उद्देश्य निवेशकों को नियमित और निश्चित आय प्रदान करना है. ऐसी योजनाएं आम तौर पर निश्चित आय प्रतिभूतियों जैसे बांड, कॉर्पोरेट डिबेंचर, सरकारी प्रतिभूतियों और मुद्रा बाजार के साधनों में अपना निवेश करती हैं और ऐसे फंड इक्विटी योजनाओं की तुलना में कम जोखिम वाले होते हैं.
हालांकि, ऐसे फंड्स में कैपिटल एप्रिसिएशन के अवसर भी सीमित होते हैं. देश में ब्याज दरों में होने वाले बदलाव के कारण ऐसे फंडों की एनएवी प्रभावित होती है. ब्याज दरें कम होने पर ऐसे फंडों के एनएवी में अल्पावधि में वृद्धि होने की संभावना रहती है और ब्याज दर में वृद्धि होने पर इसके विपरीत प्रभाव पड़ता है. तथापि दीर्घावधि के निवेशक इन उतार-चढ़ावों से परेशान नहीं हो सकते हैं.
संतुलित योजनाओं का उद्देश्य विकास और नियमित आय दोनों ही प्रदान करना है क्योंकि ऐसी योजनाएं इक्विटी और निश्चित आय प्रतिभूतियों दोनों में इनके प्रस्ताव दस्तावेजों में दर्शाए अनुपात में निवेश करती हैं. ये मध्यम वृद्धि की तलाश कर रहे निवेशकों के लिए उपयुक्त हैं. शेयर बाजारों में शेयर की कीमतों में उतार चढ़ाव होने के कारण भी ये फंड प्रभावित होते हैं. हालांकि, ऐसे फंडों के एनएवी के शुद्ध इक्विटी फंड की तुलना में अस्थिर होने की संभावना कम होती है.
खुदरा रियल एस्टेट में निजी इक्विटी निवेश जनवरी-सितंबर में 63% घटा: नाइट फ्रैंक
नई दिल्लीः खुदरा रियल एस्टेट क्षेत्र में निजी इक्विटी (पीई) निवेश इस साल जनवरी-सितंबर के दौरान 63 प्रतिशत गिरकर 30.3 करोड़ अमेरिकी डॉलर रह गया। नाइट फ्रैंक के अनुसार इस दौरान निवेशक उच्च मुद्रास्फीति के चलते खपत पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंतित थे। पिछले साल की समान अवधि में खुदरा रियल एस्टेट क्षेत्र में निजी इक्विटी निवेश 81.7 करोड़ अमरीकी डॉलर था।
रियल एस्टेट सलाहकार नाइट फ्रैंक इंडिया ने 'भारत में निजी इक्विटी निवेश के रुझान' शीर्षक से जारी एक रिपोर्ट में कहा, ''निवेशकों ने खुदरा क्षेत्र से परहेज किया, क्योंकि उन्हें उच्च मुद्रास्फीति के किसी नकारात्मक असर के बारे में चिंता है।'' हालांकि, सलाहकार फर्म को लगता है कि खुदरा क्षेत्र में निवेश आता रहेगा, क्योंकि इसकी वृद्धि संभावनाओं में तेजी बनी हुई इक्विटी निवेश है। उसने कहा कि खुदरा रियल एस्टेट क्षेत्र में निवेशक बड़े शहरों के अलावा अन्य शहरों का रुख भी कर रहे हैं।
नाइट फ्रैंक इंडिया ने कहा कि कुल मिलाकर भारतीय रियल एस्टेट क्षेत्र ने जनवरी-सितंबर 2022 के दौरान कार्यालय, वेयरहाउसिंग, आवासीय और खुदरा क्षेत्रों में 4.2 अरब अमेरिकी डॉलर का निजी इक्विटी निवेश हासिल किया, जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 25 प्रतिशत कम है।
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निवेश कर अमीर बनने के ये हैं 10 बेहतरीन विकल्प
सचाई यह है कि कम जोखिम के साथ बेहतरीन रिटर्न नहीं कमाया जा सकता. वास्तव में जहां रिटर्न अधिक होगा, वहां जोखिम भी अधिक होगा.
निवेश के किसी विकल्प को चुनते वक्त आपको जोखिम उठाने की अपनी क्षमता के बारे में जानना-समझना जरूरी है. कुछ निवेश ऐसे हैं जिनमें लंबी अवधि में अधिक जोखिम के साथ अधिक रिटर्न का मौका मिलता है.
निवेश के वास्तव में दो तरीके हैं-वित्तीय और गैर वित्तीय निवेश विकल्प.
इसे भी पढ़ें: कैसे ट्रांसफर करें PPF अकाउंट?
वित्तीय प्रोडक्ट में आप शेयर बाजार से संबद्ध विकल्प (शेयर, म्यूचुअल फंड) चुन सकते हैं या फिक्स्ड इनकम (PPF, बैंक FD आदि) के विकल्प चुन सकते हैं. गैर वित्तीय निवेश विकल्प में सोना, रियल एस्टेट आदि आते हैं. ज्यादातर भारतीय निवेश अब तक निवेश के इसी गैर वित्तीय निवेश विकल्प का प्रयोग करते रहे हैं.
हम आपको यहां बता रहे हैं निवेश के शीर्ष 10 विकल्प:
शेयरों में निवेश
हर किसी के लिए शेयरों में सीधे निवेश करना आसान नहीं है. इसमें रिटर्न की कोई गारंटी भी नहीं है. सही शेयरों का चुनाव मुश्किल काम है, इसके साथ ही शेयर की सही समय पर खरीदारी और सटीक वक्त पर निकलना महत्वपूर्ण है. निवेश के अन्य विकल्पों की तुलना में शेयर में लंबी अवधि में रिटर्न देने की क्षमता सबसे अधिक होती है.
इक्विटी म्यूचुअल फंड
म्यूचुअल फंड की यह कैटेगरी शेयरों में निवेश से ही रिटर्न कमाती है. सेबी के निर्देश के मुताबिक जो म्यूचुअल फंड स्कीम अपने फंड का 65% शेयरों में निवेश करती है, वह इक्विटी म्यूचुअल फंड कहलाती है. इसमें एक फंड मैनेजर होता है जो पर्याप्त रिसर्च के बाद निवेश के लायक शेयर चुनता है और उसमें निवेश करता है.
इक्विटी स्कीम बाजार पूंजीकरण या सेक्टर के हिसाब से अलग हो सकती हैं. इस समय इक्विटी म्यूचुअल फंड का एक, तीन या पांच साल का रिटर्न 15फीसदी सालाना के हिसाब से रहा है.
डेट म्यूचुअल फंड
म्यूचुअल फंड की यह कैटेगरी उन निवेशकों के लिए सही है जो निवेश से गारंटीड रिटर्न कमाना चाहते हैं. ये म्यूचुअल फंड कॉरपोरेट बांड्स, सरकारी सिक्योरिटीज, ट्रेजरी बिल्स, कमर्शियल पेपर आदि में निवेश से रिटर्न कमाती है. इस समय डेट म्यूचुअल फंड का एक, तीन या पांच साल का रिटर्न 6.5, 8 और 7.5 फीसदी सालाना के हिसाब से रहा है.
नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS)
नेशनल पेंशन सिस्टम (nps) का प्रदर्शन पिछले कुछ सालों में अच्छा रहा है. बहुत कम फीस स्ट्रक्चर भी इसे निवेश का आकर्षक विकल्प बनाता है. बाजार से जुड़े उत्पादों में देश में यह सबसे कम खर्च वाला प्रोडक्ट है. निकासी संबंधी नियमों में बदलाव और अतिरिक्त टैक्स-छूट की वजह से भी यह निवेशक की पसंद में शामिल हो गया है.
एनपीएस बच्चों की शिक्षा, शादी, घर बनाने या किसी मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति में आंशिक निकासी की सुविधा देता है. इसमें हालांकि रिटायरमेंट के बाद भी आपको निवेश में बने रहना जरूरी होता है. यह वास्तव में शेयर, FD, कॉरपोरेट बांड, लिक्विड फंड और सरकारी निवेश विकल्प का मिला जुला रूप है.
इस समय NPS का एक, तीन या पांच साल का रिटर्न 9.5, 8.5 और 11 फीसदी सालाना के हिसाब से रहा है.
पीपीएफ
देश में निवेशकों के बीच पीपीएफ सर्वाधिक लोकप्रिय बचत योजनाओं में से एक है. इनकम टैक्स कानून के सेक्शन 80C के तहत किसी एक वित्त वर्ष में आप पीपीएफ में 1.5 लाख रुपये के निवेश पर टैक्स छूट प्राप्त कर सकते हैं.
निवेश के इस विकल्प की सबसे अच्छी बात यह है कि यह आपको EEE (निवेश के वक्त करमुक्त, ब्याज पर करमुक्त, निवेश भुनाने पर करमुक्त) का लाभ देता है.
निवेश के इस विकल्प में सरकारी गारंटी इसकी लोकप्रियता को और बढ़ा देती है.
बैंक FD
बैंक या पोस्ट ऑफिस में कराई जाने वाली टैक्स सेविंग FD से आप निवेश के वक्त सेक्शन 80C के तहत टैक्स बचा सकते हैं. यह निवेश का सुरक्षित और गारंटीड रिटर्न वाला विकल्प है. इस पर मिलने वाले ब्याज पर आपको इनकम टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स चुकाना पड़ता है.
डिपाजिट इंश्योरेंस एवं क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन के हिसाब से आपकी एक लाख रुपये तक की जमा रकम बीमित है.
सीनियर सिटीजन सेविंग स्कीम (SCSS)
पोस्ट ऑफिस की तरफ से बेस्टसेलर के रूप में यह स्कीम रिटायर्ड लोगों के लिए निवेश का पसंदीदा स्रोत है. यह सेवानिवृत लोगों के लिए आय का नियमित स्रोत भी है. इस स्कीम की अवधि पांच साल है जिसे तीन साल के लिए और बढ़ाया जा सकता है.
इसमें हालांकि प्रति व्यक्ति 15 लाख रुपये की अधिकतम निवेश सीमा है. यह 60 साल से अधिक उम्र के निवेशकों के लिए ही खुली है, हालांकि सेना से रिटायर मेंट लेने वाले लोगों के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं है.
विशेषज्ञों का मानना है कि जीवन भर की बचत को पार्क करने और उस पर कमाई के हिसाब से यह स्कीम बेहतरीन है. यह सेवानिवृत लोगों की जरूरत के हिसाब से बनाया गया है.
रिजर्व बैंक के टैक्सेबल बांड्स
पहले इस स्कीम में आठ फीसदी सालाना का ब्याज मिलता था जिसे सरकार ने बदल कर इक्विटी निवेश अब 7.75 फीसदी ब्याज वाला विकल्प बना दिया है. इस बांड में पांच साल के लिए निवेश किया जा सकता है.
रियल एस्टेट
खुद के रहने के हिसाब से घर खरीदना अब निवेश के लिहाज से भी आकर्षक विकल्प बनकर उभरा है. अगर आपको रहने की जरूरत नहीं है तो आप निवेश के हिसाब से भी दूसरा घर खरीद सकते हैं. निवेश के इस विकल्प में आपको सिर्फ प्रॉपर्टी की लोकेशन और वहां मौजूद सुविधाओं का ध्यान रखने की जरूरत है.
इसमें निवेश से आप पूंजी में इजाफा और किराये से आमदनी, दो तरीके से रिटर्न कमा सकते हैं.
सोना
निवेश का यह विकल्प सदियों से भारतीयों की पसंद में शामिल है, पहनने के लिए खरीदी जाने वाली ज्वेलरी से लेकर निवेश के रूप में खरीदे गए सिक्के और बार तक, सोना बिना किसी संदेह के भारतीयों की पसंद में सबसे ऊपर है. अब आप पेपर गोल्ड के रूप में भी सोने में निवेश कर सकते हैं.
गोल्ड ETF में निवेश करना और भुनाना दोनों ही शेयर बाजार के जरिये होता है.
आप क्या करें
निवेश के कुछ विकल्प शेयर बाजार से संबद्ध हैं इक्विटी निवेश तो कुछ निश्चित ब्याज वाले हैं. आप जोखिम लेने की अपनी क्षमता के हिसाब से ही रिटर्न की उम्मीद रखें.
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क्या होता है हाइब्रिड फंड, जानिए इसमें निवेश के फायदे?
म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) में निवेश करना सबसे सही और सुरक्षित विकल्प माना जाता है. कई तरह के अच्छे म्यूचुअल फंड बाजार में मौजूद हैं, जिनके जरिए हम अपना पैसा निवेश कर सकते हैं. उनमें से एक है हाइब्रिड फंड्स (Hybrid Funds). जब से शेयर बाजार में तेजी का रुख लौटा है तो ऐसे में हाइब्रिड फंड्स में लोगों का निवेश भी दोबारा से लौट आया है.
सरबजीत कौर
- नई दिल्ली,
- 10 नवंबर 2021,
- (अपडेटेड 10 नवंबर 2021, 10:36 PM IST)
- हाइब्रिड फंड के जरिये इक्विटी और डेट दोनों में निवेश
- कई बार फंड का पैसा सोना में भी लगाया जाता है
म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) में निवेश करना सबसे सही और सुरक्षित विकल्प माना जाता है. कई तरह के अच्छे म्यूचुअल फंड बाजार में मौजूद हैं, जिनके जरिए हम अपना पैसा निवेश कर सकते हैं. उनमें से एक है हाइब्रिड फंड्स (Hybrid Funds). जब से शेयर बाजार में तेजी का रुख लौटा है तो ऐसे में हाइब्रिड फंड्स में लोगों का निवेश भी दोबारा से लौट आया है. निवेशकों के बीच हमेशा से पसंदीदा रहने वाला फंड माना जाता है, तो हम आपको बताएंगे कि क्या होता है हाइब्रिड फंड्स और कैसे इसे बाकी म्यूचुअल फंड्स से अलग माना जाता है? साथ ही किसे हाइब्रिड फंड में निवेश करना चाहिए?
हाइब्रिड फंड क्या है?
हाइब्रिड फंड वो म्यूचुअल फंड स्कीम है जो इक्विटी और डेट दोनों में निवेश करती है. या फिर कहें तो एक ही फंड है जो कई तरह के एसेट क्लास में निवेश करता है. अगर बाजार में रिस्क कम लेना चाहते हैं तो आपके लिए हाइब्रिड फंड में निवेश करना एक बेहतर विकल्प है. क्योंकि, इनमें रिस्क से कम के साथ-साथ रिटर्न भी ज्यादा मिलता है. फिलहाल कोरोना की वजह से बाजार में काफी कुछ अभी भी संभला नहीं. तीसरी लहर का डर अभी भी कहीं न कहीं लोगों में मौजूद है. तो ऐसे में निवेशकों के लिए कम रिस्क के फंड यानी की हाइब्रिड फंड में निवेश करना सही माना जा रहा है.
राइट रिसर्च की को-फाउंडर-सोनम श्रीवास्तव के मुताबिक- 'जैसा कि शब्द से पता चलता है, एक हाइब्रिड फंड जोखिम सहनशीलता के विभिन्न स्तरों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए कई परिसंपत्ति वर्गों में निवेश करता है. आमतौर पर, निवेश इक्विटी और निश्चित आय के साधनों के मिश्रण में किया जाता है. जहां इंडेक्स फंड मुख्य रूप से इक्विटी और इक्विटी से संबंधित इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करते हैं और डेट फंड फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज और अन्य डेट इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करते हैं, वहीं हाइब्रिड फंड इक्विटी और डेट से जुड़े इंस्ट्रूमेंट्स दोनों में निवेश करते हैं. इसलिए इन्हें बैलेंस्ड फंड भी कहा जाता है.'
क्यों बेहतर है हाइब्रिड फंड?
हाइब्रिड फंड की खासियत यह है कि फंड का पैसा इक्विटी के साथ डेट एसेट में भी लगाया जाता है. कई बार फंड का पैसा सोना में भी लगाया जाता है. अलग-अलग एसेट क्लास में निवेश के कारण इसमें निवेश से डाइवर्सिफिकेशन का फायदा मिलता है. मान लीजिए अगर इक्विटी में लगा पैसा कम होता है या बाजार के माहौल के मुताबिक बिगड़ता है तो डेट और सोने में लगे पैसे के जरिए फंड बैलेंस हो जाता है. ठीक अगर सोने में कमजोरी से फंड में रिटर्न कम होता है तो डेट और इक्विटी के जरिए बैलेंस हो जाता है. यानी की अलग-अलग एसेट क्लास यानी की डाइवर्सिफिकेशन से में निवेश करने से फंड को फायदा होता है.
कितने प्रकार के होते हैं हाइब्रिड फंड?
हाइब्रिड फंड 6 मुख्य प्रकार के होते हैं. जिनके जरिए डेट, इक्विटी या फिर सोने में पैसा इक्विटी निवेश निवेश किया जाता है.
एग्रेसिव हाइब्रिड फंड:
इक्विटी में 60 से 80 फीसदी निवेश
20 से 30 फीसदी का निवेश डेट में
पांच साल की अवधि के लिए निवेश सही
कंजर्वेटिव हाइब्रिड फंड:
10 से 25 फीसदी निवेश इक्विटी में
बाकी बची रकम का डेट एसेट में इस्तेमाल
स्थिर या नियमित आय के लिए फायदेमंद
डायनेमिक एसेट एलोकेशन फंड:
फंड का इस्तेमाल डायनेमिक तरीके से एसेट क्लास में किया जाता है
100 फीसदी निवेश इक्विटी या डेट में किया जाता है
मल्टी एसेट एलोकेशन फंड:
इक्विटी, गोल्ड और डेट तीनों एसेट क्लास में निवेश होता है
65 फीसदी निवेश इक्विटी में
20 से 30 फीसदी निवेश डेट एसेट में
10 से 15 फीसदी निवेश गोल्ड में होता है
आर्बिट्राज फंड्स:
कुल एसेट का कम से कम 65 फीसदी इक्विटी से जुड़े साधनों में निवेश
इक्विटी सेविंग्स फंड:
इक्विटी, डेट और आर्बिट्राज में होता है निवेश
कुल एसेट का 65 फीसदी निवेश शेयरों में जरूरी
10 फीसदी निवेश डेट में करना अनिवार्य
रिटर्न कैसा मिलता है?
जानकारों की मानें तो हाइब्रिड फंड हमेशा अच्छे रिटर्न्स देने के लिए माने जाते रहे हैं. हाइब्रिड फंड्स जब डेट सिक्योरिटीज के की सुरक्षा के कारण शेयर बाजार अस्थिर होता है तो अच्छा परफॉर्म करते हैं. बाजार के उतार-चढ़ाव का सामना करने की क्षमता होती है. फंड को चुनने से पहले अपने जोखिम, निवेश करने के लक्ष्य को जरूर समझें. 5 से 7 साल तक के निवेश से 20 से 30 फीसदी तक का रिटर्न संभव.
माई वेल्थ डॉट कॉम के को-फाउंडर-हर्षद चेतनवाला के मुताबिक-'वह निवेशक जो इक्विटी से कम जोखिम और डेब्ट फंड्स से थोड़ा अधिक रिटर्न्स चाहते हैं वह हाइब्रिड फंड्स में निवेश कर सकते है. इस फंड में फंड मैनेजर बाजार और अर्थव्यवस्था की स्थिति के अनुसार इक्विटी इक्विटी और डेब्ट का एक संतुलित पोर्टफोलियो बनाते है.'
जाने टैक्स से जुड़ी बातें:
अगर आप निवेश किसी भी फंड में निवेश करना चाहते हैं लेकिन कर नहीं सही फंड चुन नहीं पा रहे हैं तो आपके लिए हाइब्रिड फंड सबसे सही विकल्प है. लेकिन इसमें टैक्स भी लगता है. LTCG यानी की लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स पर बिना इंडेक्सेशन के 10 फीसदी टैक्स और शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स (STCG) पर 15 फीसदी टैक्स लगता है. साथ ही, हाइब्रिड फंड के डेट कंपोनेंट पर किसी भी अन्य डेट म्यूचुअल फंड की तरह टैक्स लगाया जाता है. इसके अलावा, डेट कंपोनेंट से एलटीसीजी टैक्स 20% पोस्ट इंडेक्सेशन और 10% बिना इंडेक्सेशन पर टैक्स लगता है.
किसे करना चाहिए निवेश:
अगर कोई भी व्यक्ति मोटा मुनाफा चाहता है तो उसे हमेशा 5 से 7 साल तक के समय सीमा के लिए हाइब्रिड फंड में निवेश करना चाहिए. म्यूचुअल फंड में नए निवेशकों के लिए ये काफी अच्छा फंड माना जाता है. डाइवर्सिफिकेशन और एसेट एलोकेशन वाले फंड में निवेश की वजह से भी ये फंड काफी सही माना जाता है. कम जोखिम उठाने वालों से लेकर एग्रेसिव निवेशक भी हाइब्रिड फंड में पैसा लगा सकते हैं.
सही हाइब्रिड फंड कैसे चुनें?
किसी भी हाइब्रिड फंड में निवेश करने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है जैसे आपकी जोखिम लेने की क्षमता, कब तक निवेश किया जा सकता है, खर्चे की दर और फंड का प्रदर्शन सभी को ध्यान में रखकर निवेश करें.
इंडिया के कुछ टॉप हाइब्रिड फंड हैं:
(SOURCE: Sonam Gupta, Co-Founder, Wright Research)
1. Quant Absolute Fund
2. ICICI Prudential Thematic Advantage Fund (FOF)
3. BNP Paribas Substantial Equity Hybrid Fund
4. Canara Robeco Equity Hybrid Fund
ऊपर दिए गए सभी फंड्स का सालाना रिटर्न 20 से 30 फीसदी के बीच रहा है
(डिस्क्लेमर: किसी भी तरह के फंड में निवेश से पहले अपने फंड मैनेजर से सलाह जरूर लें.)
इक्विटी में निवेश बढ़ाने का वक्त
यदि इतिहास में जाएं तो लंबी अवधि के खराब प्रदर्शन के बाद इक्विटी से शानदार रिटर्न के अवसर की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। हकीकत तो यह है कि पिछले डेढ़ साल में सोने और रीयल एस्टेट ने सेंसेक्स के मुकाबले कमतर प्रदर्शन किया है। पिछले 1
यदि इतिहास में जाएं तो लंबी अवधि के खराब प्रदर्शन के बाद इक्विटी से शानदार रिटर्न के अवसर की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। हकीकत तो यह है कि पिछले डेढ़ साल में सोने और रीयल एस्टेट ने सेंसेक्स के मुकाबले कमतर प्रदर्शन किया है। पिछले 18 महीनों के दौरान सोने ने रुपये के लिहाज से कोई रिटर्न नहीं दिया है।
भारतीय इक्विटी बाजारों ने छह साल बाद हाल में नई ऊंचाइयां हासिल की हैं। सेंसेक्स लगभग रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है, लेकिन इस बार इसे लेकर ज्यादा सनसनी नहीं है। दरअसल, पिछले छह साल में सेंसेक्स प्राय: जहां का तहां रहा। वैसे, फार्मा, आइटी आदि कंपनियों के शेयरों ने नई ऊंचाइयां हासिल कीं। बाजार के अन्य हिस्से इस स्तर से न सिर्फ वंचित रहे, बल्कि इस हद तक नीचे रहे मानो सेंसेक्स 21000 के बजाय 12000 पर हो।
असल में इस दौरान घरेलू और अंतरराष्ट्रीय वजहों से भारत ने वृहत आर्थिक मोर्चे पर अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव देखे हैं। इन नकारात्मक कारकों ने न केवल कंपनियों के प्रदर्शन पर दबाव बनाया, बल्कि भारतीय निवेशकों के मन में भी इक्विटी के प्रति एक तरह की भय और उदासीनता की भावना पैदा कर दी। वक्त के साथ शेयरों के भाव तो अपेक्षाकृत सुधर गए, परंतु घरेलू खुदरा निवेशकों ने इक्विटी में निवेश का अनुपात रिकॉर्ड स्तर तक कम कर दिया। यदि इतिहास में जाएं तो इस तरह की लंबी अवधि के खराब प्रदर्शन के बाद इक्विटी से शानदार रिटर्न के अवसर की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। हकीकत तो यह है कि पिछले डेढ़ साल में सोने और रीयल एस्टेट ने सेंसेक्स के मुकाबले कमतर प्रदर्शन किया है। पिछले 18 महीनों के दौरान सोने ने रुपये के लिहाज से कोई रिटर्न नहीं दिया है। वह भी रुपये की कीमत में महत्वपूर्ण गिरावट के बावजूद। डॉलर के लिहाज से तो सोने के दाम पिछले दो साल में 30 फीसद से ज्यादा गिरे हैं। इसी प्रकार, निवेशकों ने प्रॉपर्टी में काफी पैसा लगाया है। मगर प्रॉपर्टी के दाम उस हिसाब से नहीं बढ़ रहे हैं।
वर्ष 2013 लगातार दूसरा साल था, जब भारतीय घरेलू म्यूचुअल फंडों की इक्विटी स्कीमों में जितना पैसा लगाया गया, उससे ज्यादा इन्हें भुनाया गया। वर्ष 2012 में 15.6 हजार करोड़ रुपये के इक्विटी म्यूचुअल फंड भुनाए गए थे। वहीं, वर्ष 2013 में यह आंकड़ा 10.5 हजार करोड़ रुपये का रहा। इसे विडंबना ही कहा जाएगा, क्योंकि डाइवर्सिफाइड इक्विटी म्यूचुअल फंड स्कीमों ने पिछले दो साल में अन्य असेट श्रेणियों के मुकाबले औसतन ज्यादा रिटर्न दिया है।
विदेशी संस्थागत निवेशकों यानी एफआइआइ ने 2009 से अब तक 4.4 लाख करोड़ रुपये की राशि भारतीय इक्विटी बाजारों में निवेश की है। इससे उनका बाजार स्वामित्व रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। हमारा घरेलू वृहत आर्थिक वातावरण चाहे जैसा रहा हो, यह उभरते बाजारों से ज्यादा खराब नहीं है। भारत की अच्छी दीर्घकालिक संभावनाओं को देखते हुए ही यूनीलीवर, ग्लैक्सो, डियाजियो जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने बड़े सौदों के मार्फत भारतीय कंपनियों में निवेश बढ़ा दिया है।
वैसे भी अर्थव्यवस्था की सबसे बुरी चुनौतियों के अब खत्म होने की संभावना है। महंगाई के मोर्चे पर भी हालत सुधर रही है। आने वाले वर्षो में महंगाई कम होने के आसार हैं। इसी तरह ब्याज दरों के बढ़ने का सिलसिला भी थम सकता है। भारत की विकास दर सबसे निचले स्तर पर जाकर वापस बढ़ने की ओर उन्मुख है। निर्यात बढ़ने से इसमें सुधार दिखने लगा है। उधर, पिछले तीन साल में 40 फीसद गिरने के बाद रुपया भी अब स्थिरता का प्रदर्शन कर रहा है। अमेरिकी व अन्य विकसित देशों की अर्थव्यवस्था की जोरदार रिकवरी तथा रुपये में गिरावट से भारतीय कंपनियों की प्रतिस्पद्र्धा क्षमता इक्विटी निवेश बढ़ी है। इससे भारतीय निर्यातों का भविष्य उज्ज्वल दिख रहा है। बेस बहुत नीचे होने के कारण दो साल बाद अनेक कारक आर्थिक विकास दर को पांच फीसद से ऊपर ले जा सकते हैं। लंबी सुस्ती के बाद कंपनियों की आमदनी भी 15 फीसद से ऊपर बढ़ने की संभावना है। चालू खाता घाटा पहले ही आधा यानी जीडीपी का 2.3 फीसद हो गया है। सरकार राजकोषीय घाटे को भी काबू में रखने की कोशिश कर रही है।
कुल मिलाकर ज्यादातर बुनियादी कारकों में निश्चित रूप से सुधार दिख रहा है। हालांकि सब कुछ अंतत: राजनीतिक स्थिरता और नीतिगत निश्चितता पर निर्भर करेगा। हमारे हिसाब से मई, 2014 में बनने वाली नई सरकार का स्वरूप व आकार-प्रकार उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना कि भारत को नए सिरे से खड़ा करने की उसकी प्रतिबद्धता। कोई भी स्थिर सरकार, जो नीतियों में निश्चितता, निर्णयों में पारदर्शिता के अलावा अर्थव्यवस्था व बाजारों के हित में फैसले ले, वह सही होगी। नीतियों में सुधार होते ही भारत में निवेश में जोरदार बढ़ोतरी तय है।
स्टॉक्स के हिसाब से बाजार में भागीदारी अब काफी व्यापक हो गई है। विभिन्न क्षेत्रों में कंपनियों के लिए अवसरों की भरमार है। अनेक भारतीय कंपनियां 20 साल से ज्यादा पुरानी हैं, मगर उनके शेयरों की कीमत वास्तविक से बहुत कम है। जो अच्छी कंपनियां लंबी मंदी में भी डटी रहीं, वे अब सबसे ज्यादा अच्छा रिटर्न देने की स्थिति में होंगी। लिहाजा, भारत के छोटे निवेशकों को अब शेयरों में ज्यादा पैसा लगाना शुरू कर देना चाहिए। पिछले छह साल के बाद अब शेयरों के भाव अपेक्षाकृत काफी आकर्षक हैं। ऐसी ही स्थिति साल 1995 से 2001 के बीच भी आई थी। तब छह साल बाद भारतीय बाजारों ने छह गुना रिटर्न दिए थे। बाजार में उतार-चढ़ाव तो अभी भी आएंगे, परंतु जो निवेशक मध्यम अवधि के हिसाब से निवेश करेंगे और हर गिरावट में खरीदारी से नहीं चूकेंगे उन्हें बढि़या रिटर्न मिलना तय है। हमारी राय में इसी तरह का नजरिया अपनाना ठीक रहेगा।